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तथा सुखेणचरित्र नो पहिले ही प्रकाश में आ चुकी है । इनके अतिरिक्त इनकी एक और कृति "कर्मस्वरूपवर्णन" अभी बधीचन्दजी के मन्दिर के शास्त्र भंडार में मिली है | इस रचना में कर्मों के स्वरूप की विवेचना की गयी है | कवि ने इसे संवत् १७.७ ( सन् १६५० ) में समाप्त किया था। 'कर्मस्वरूप' के उल्लासों के अन्त में जो विशेषण लगाये गये हैं उनसे पता चलता है कि पंडित जी न्यायशास्त्र के पारंगत विद्वान थे तथा उन्होंने कितने ही शास्त्रार्थों में अपने विरोधियों को हराया था। कवि का दूसरा नाम धादिराज भी था।
१६. जिनदत्त ___पं० जिनदत्त भट्टारक शुभचन्द्र के समकालीन विद्वान थे तथा उनके धनिष्ट शिष्यों में से थे। भधारक शुभचन्द्र ने अम्बिकाकल्प की जो रचना की थी उसमें मुख्य रूप से जिनदत्त का ही आग्रह था । ये स्वयं भी हिन्दी के अच्छे विद्वान थे तथा संस्कृत भाषा में भी अपना प्रवेश रखते थे । अभी हिन्दी में इनकी २ रचनायें उपलब्ध हुई है जिनके नाम धर्मतरुगीत तथा जिनदत्तविलास है। जिनदत्तविलास में में कवि द्वारा बनाये हुये पदों एवं स्फुट रचनाओं का संग्रह है तथा धर्मतरुगीत एक छोटा सा गीत है।
२०, ब्रह्म जिनदास ये भट्टारक सकलकीर्ति के शिष्य थे। संस्कृत, प्राकृत, एयं गुजराती भाषाओं पर इनका पूरा अधिकार था। इसके अतिरिक्ष विदो भाषा में इसकी दो मनिधी । यि की अब तक संस्कृत एवं गुजराती का कितनी ही रचनायें उपलब्ध हो चुकी हैं इनमें आदिनाथ पुराए, धनपालरास, यशोधररास, श्रादि प्रमुख हैं । इनकी सभी रचनाओं की संख्या २० से भी अधिक है । अभी जयपुर के ठोलियों के मन्दिर में इनका एक छोटा सा आदिनाथ स्तवन हिन्दी में लिखा हुआ मिला है जो बहुत ही सुन्दर एवं भाव पूर्ण है तथा ग्रंथ सूची में पूरा दिया हुआ है।
२१. ब्रह्म ज्ञानसागर ये भट्टारक श्रीभूषण के शिष्य थे । संस्कृत के साथ साथ ये हिन्दी के भी अच्छे विद्वान थे। इन्होंने हिन्दी में २६ से भी अधिक कथायें लिखी है जो पद्यात्मक है। भाषा की दृष्टि से ये सभी अच्छी हैं । भट्टारक श्रीभूषण ने पाण्डवपुराण ( संस्कृत ) को संवत् १६५७ में समाप्त किया था। क्योंकि ब्रह्म ज्ञानसागर भी इन्हीं भट्टारक जी के शिष्य थे अतः कवि के १८ वीं शताब्दी के होने में कोई सन्देह नहीं रह जाता है | इन्होंने कथाओं के अतिरिक्त और भी रचनायें लिखी होंगी लेकिन अभी तक वे उपलब्ध नहीं हुई है।
२२. ठक्कुरसी १६ वीं शताब्दी में होने वाले कवियों में ठक्कुरसी का नाम उल्लेखनीय है । ये हिन्दी के अच्छे विद्वान थे तथा हिन्दी में छोटी छोटी रचनायें स्तिस्यकर स्वाध्याय प्रेमियों का दिल बहलाया करते