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________________ थे। इनके पिता का नाम घेल्द था जो स्वयं भी की थे ! हि बार रजि कि चेन्द्रिय नेलि तो पहिले ही प्रकाश में आ चुकी हैं लेकिन नेमिराजमतिमेखि पार्षशनसतावीसी और चिन्तामशिजयमान तथा सीमंधरस्तवन और उपलब्ध हुए हैं जो हिन्दी की असली रचनायें है। २३. थानसिंह थानसिंह सांगानेर (जयपुर) के रहने वाले थे । ये खण्डेलवाल जैन थे तथा ठोलिया इनका गोत्र था। सुबुद्धि प्रकाश की ग्रन्थ प्रशास्ति में इन्होंने आमेर, सांगानेर तथा जयपुर नगर का वर्णन लिखा है । जब इनके माता पिता नगर में अशान्ति के कारण करौली चले गये थे तब भी ये सांगानेर छोडकर नहीं जा सके और इन्होंने वही रहते हुये रचनायें लिखी थी। कधि की २ रचनायें प्राप्त होती है-रत्नकरदश्रावकाचार भाषा तथा सुद्धि प्रकाश । प्रथम रचना को इन्होंने सं. १८२१ में तथा दूसरी को सं. १८४७ में समाप्त किया था। सुबुद्धि प्रकास का दूसरा नाम थानविलास भी है इसमें कृषि की छोटी र रचनाओं का संग्रह है। दोनों ही रचनाओं की भाषा एवं वर्णन शैली साधारणतः अच्छी है । इनकी भाषा पर राजस्थानी का प्रभाव है । २४. मुनि देवचन्द्र मुनि देवचन्द्र युगप्रधान जिनचन्द्र के शिष्य थे। इन्होंने आगमसार की हिन्दी गय टीका संवत् १४७६ में मारोठ गांव में समाप्त की थी | भागमसार ज्ञानामृत एवं धर्मामृत का सागर है तथा तात्त्विक चर्चामों से भरपूर है। रचना हिन्दी गद्य में है जिस पर मारवाड़ी मिश्रित जयपुरी भाषा का प्रभाव है। २५. देवास देवाब्रह्म हिन्दी के अच्छे कवि थे । इनके सैकडों पद मिलते हैं जो विभिन्न राग रागनियों में लिखे हुये हैं। सासबहू का झगडा श्रादि जो अन्य रचनाये है वे भी अधिकांशतः पद रूप में ही लिखी हुई है । इन्होंने हिन्दी साहित्य की ठोस सेवा की थी। कवि संभवतः जयपुर के ही थे तथा अनुमानतः १८ वीं शताब्दी के थे। २६. बाया दुलीचन्द जयपुर के २० वीं शताब्दी के साहित्य सेवियों में बाबा दुलीचन्द का नाम विशेषतः उल्लेखनीय है। ये मूलतः जयपुर निवासी नही थे किन्तु पूना (सितारा) से आकर यहां रहने लगे थे। इनके पिता का नाम मानकचन्दजी था । आते समय अपने साथ सैंकडों हसलिखित अन्य भी साथ लाये थे, जो आजकल जयपुर के बड़े मन्दिर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत हैं तथा यह संग्रहालय भी बाश दुलीचन्द भण्डार के नाम से प्रसिद्ध है । इस भारद्वार में 5-10 हस्तलिखित ग्रन्थ है ! जो सभी बाबाजी द्वारा संग्रहीत है।
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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