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________________ ( १५ ) बाबाजी बडे साहित्यिक थे। दिन रात साहित्य सेवा में व्यतीत करते थे । ग्रन्थों की प्रतिलिपियां करना, नवीन प्रन्थों का निर्माण तथा पुराने ग्रन्थों को व्यवस्थित रूप से रखना ही आपके प्रतिदिन के कार्य थे। बड़े मन्दिर के भण्डार में तथा स्वयं बाबाजी के भण्डार में इनके हाथ से लिखी हुई कितनी ही प्रतियां मिलती है । इन्होंने १५ से अधिक मन्थों की रचना की थी । जिनमें उपदेशरत्नमाला भाषा, जैनागारप्रक्रिया, ज्ञानप्रकाशविलास, जैनयात्रादर्पण, धर्मपरीक्षा भाषा आदि उल्लेखनीय हैं। इन्होंने भारत के सभी तर्थों की यात्रा की थी और उसी के अनुभव के आधार पर इन्होंने जैनयात्रादर्पण लिखा था | मन्दिर निर्माण विधि नामक रचना से पता चलता है कि ये शिल्पशास्त्र के भी ज्ञाता थे। इन सबके अतिरिक्त इन्होंने भारत के कितने ही स्थानों के शास्त्र भण्डारों को भी देखा था और उसीके आधार पर संस्कृत और हिन्दी भाषा के अन्थों के मन्थकार विवरण लिखा था जिसमें किस विद्वान ने कितने प्रन्थ लिखे थे तथा वे किस किस भण्डार में मिलते हैं दिया हुआ है। अपने ढंग की यह अनूठी पुस्तक है। इनकी मृत्यु ताः ४ अगस्त सन् १६२८ में आगरे में हुई थी । २६. नन्द वाल जाति में उत्पन्न हुये थे । गोयल इनका गोत्र था । पिता का नाम भैरू' तथा माता का नाम चंदा था। ये गोसना गांव के निवासी थे जो संभवतः आगरा के समीप ही था। कवि की अभी तक एक रचना यशोधर चरित्र चौपई की उपलब्ध हुई है जो ए में समाप्त हुई थी। इसमें ५६८ प हैं । रचना साधरणतः अच्छी है। तथा अभी तक अप्रकाशित है । २७. नागरीदास संभवतः ये नागरीदास के ही हैं जो कृष्णगढ़ नरेश महाराज सांवतसिंह जी के पुत्र थे । १७५० से १८१६ तक माना जाता है । चुकी हैं। वैनविलास एवं गुप्तरसप्रकाश मन्दिर के शास्त्र भण्डार में उपलब्ध इनका जन्म संवत् १७५६ में हुआ था। इनका कविता काल सं० इनकी छोटी बड़ी सथ रचना मिलाकर ७३ रचनायें प्रकाश में आ नामक अप्राप्य रचनाओं में से वैनविलास जयपुर के ठोलियों हुई हैं। इसमें ३० पत्र हैं, जिनमें कुंडलिया दोहे आदि हैं। २८. नाथूलाल दोशी नाथूलाल दोशी दुलीचन्द दोशी के पौत्र एवं शिवचन्द के पुत्र थे । इनके ६० सदासुखजी कालीवाल धर्म गुरू थे तथा दीवान अमरचन्द परम सहायक एवं कृपावान थे। दोशी जी विद्वान थे तथा ग्रंथ चर्चा में अधिक रस लिया करते थे । इन्होंने हरचन्द्र गंगवाल की प्ररेणा से संवत् १६१८ में सुकुमाल चरित्र की भाषा समाप्त की थी । रचना हिन्दी गद्य में में है जिस पर ढूंढारी भाषा का प्रभाव है ।
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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