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धर्म एवं प्राचार शास्त्र]
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२७. भल्या आराधना कार-सदासुख कासलीवाज । पत्र संख्या-५३४ 1 साइज-११४७३ इंच । भाषा-हिन्दी । विषय-याचार शास्त्र । रचना काल-सं0 भादवा सुदी २ । लेखन काल-सं. १६०८ माघ सुदी २ | पूर्ण । वेष्टन नं. ३६.1
२८. मालामहोत्सव-विनोदीलाल । पत्र संख्या-३ । साइज-११४४३ इ.। भाषा-हिन्द।। विषय-धर्म । रचना काल-- । लेखन काल-सं० १८:८ चैत्र सुदी १० । पूर्ण । वेष्टन नं. ५.५६ ।
२०६. मूलाचार प्रदीपिका-भट्टारक सकालकीर्ति | पत्र संख्या-१३ | साइब-११६x४, इन | भाषा-संस्कृत । विषय-याचार शास्त्र । रचना काल-x | लेखन काल-सं० १८८३ । पूर्य । वरन नं. ३८ ।
विशेष-भ में बारह अधिकार है। सालिगराम गोधा ने स्वपठनार्य जयपुर में अन्य की प्रतिलिपि का था। २१०. पति नं०२-पत्र संख्या--१३७ । साइज-१४५ इञ्च । लेखन काल-सं० १९८१ पौष सुदी २ । विशेष- लेखक प्रशस्ति निम्न प्रकार है
स्वस्ति सं० १५=१ वर्षे पोषमासे द्वितीयायां तियो सोमवासरे अपह वीजापुर वास्तव्ये भेदपाट ज्ञातीय न्याति श्री बलिराज सूत लीलाधर केन स्तिका निखिता । श्री मलसंघे ब्रह्म श्री राजपाल तन शिष्य श्री पठना।
२११. मूलाचार भाषा टीका-ऋषभदास। पत्र संख्या-१२ | साज-k1x. इञ्च । भावाहिन्दी गद्य । त्रिषग-प्राचार शाम । रचना काल-सं० १८.८८ कार्तिक मुदी ५ । लेखन काल-- । पूर्ण । वेष्टन नं ५ |
विशेष-बहकर स्वामी की मून पर आधारित मातुनि की प्राचार नृत्ति नाम की टीका के अनुसार माषा मुई हैं।
प्रारम्म-दौ श्री जिन सिद्धपद याचारिज उवमाय ।
साथ धर्म जिन भारती, जिन गृह चैत्य सहाय ।।१।। बट्टकर स्वामी प्रणभि, नाम वनंदि पूरि ।
लाचार विचार के माग्यो लखि गुण भूमि ||२||
अन्तिम पाउदि सिद्धान्त चक्रवत्ति करि रची टीका है सो चिरकाल पर्य-त या विष तिरहु । कैसी है टोका सई अर्धनि की है सिदि जानें । बहुरि कैसी है समस्त गुणनि की निधि । बहुरि ग्रहण की है नीति जानें ऐसो भी प्राचारज कहिये मुनिनि का प्राचरगा ताके सूक्ष्म भावनि की है अनुवृत्ति कहिने प्रवृत्ति जातै । बहुरि विख्यात है अठारह दोष रहित प्रवृत्ति जाफी ऐसा जी जिनपति कहिये ।जनेश्वर देव ताके निदोष बचनि करि प्रसिद्ध । बहुरि पाप कप मल को दूर कर!! हारी । महरि सुन्दर ।
२१२. मोङ्ग पैडी-बनारसीदास । पत्र संख्या- सारज-१०.४४ | भाषा-श्री विषयधर्म । रचना काल-X । लेखन काल-X1 पूर्ण । मेष्टन नं० ५६४ ।
विशेष-- एक प्रति और है।