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________________ ३८ ] [ धर्म एवं श्राचार शास्त्र अचिरेणैवकालेन, सुत्र प्राप्स्यन्ति शाश्वतं ॥३२७|| सारसमुच्चयमेतेच पति समाहिताः । ते स्वल्पे व कालेन पदं यात्यंत्यिनामयं ॥३२६॥ नमः परमसध्यान विघ्ननाशनहेतवे । महाकल्याणसंपशि कारिगोरिपनेमये ॥३३०॥ इति सारसमुच्चयाख्यो प्रथः समाप्तः । २५५. सारसमुच्चय-दौलतराम । पत्र संरच्या-१८ । साइन-६६x६ इंच । माषा-हिन्दी। वित्रय-धर्म । रचना काल-X । लेखन काल-XI. पूर्ण । वेष्टग नं० १०८२ । विशेष-सारसमुच्चय के अतिरिक्त पूजाओं का संग्रह है । सार समुच्चय में १०४ पद्य है । अन्तिम पय निम्न प्रकार है सार समुच्चै रह कशो गुर थाझा परवान । घानंद सुत दौलति नै मजि करि श्री भगवान ॥१०४॥ २४६. सुगुरु शतक-जिनदास गोधा। पत्र संख्या-७ । साइज-१४३ इन्च | भाषा-हिन्दी । . विषय-धर्म । रचनाकाल-सं० १८०० ] लेखन काल-x पूर्ण । वेष्टन नं. ५०२ 1 विशेष-१०१ पद्य हैं। विषय-अध्यात्म एवं योग शास्त्र २४७. अध्यात्मकमल मार्शए-राजमल्ल । पत्र संख्या-१२ । साज-१०६x४३ इव । माषाहरकत | विषय-अध्यात्म । रचना कास-X । लेखन काल-सं० १६३१ फाल्गुण सुदी ११ । पूर्ण । वेष्टन नं० २३ । विशेष-सं० १९८२ में नंदकीर्ति ने अर्गलपुर (आगरा) में प्रतितिपि की थी। अब ४ अध्यायों में पृये। होता है। २४८. अध्यात्म बारहखड़ी-दौलतराम 1 पत्र संख्या-६७ | साइज-६३४५३ इन्न । भाषा-हिन्दी (षध) | विषय-अभ्यास्म । रचना काल-सं० ११८ | शेखन काल-- | अपूर्ण । वेष्टन में० ३७
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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