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[ धर्म एवं श्राचार शास्त्र
अचिरेणैवकालेन, सुत्र प्राप्स्यन्ति शाश्वतं ॥३२७|| सारसमुच्चयमेतेच पति समाहिताः । ते स्वल्पे व कालेन पदं यात्यंत्यिनामयं ॥३२६॥ नमः परमसध्यान विघ्ननाशनहेतवे । महाकल्याणसंपशि कारिगोरिपनेमये ॥३३०॥
इति सारसमुच्चयाख्यो प्रथः समाप्तः ।
२५५. सारसमुच्चय-दौलतराम । पत्र संरच्या-१८ । साइन-६६x६ इंच । माषा-हिन्दी। वित्रय-धर्म । रचना काल-X । लेखन काल-XI. पूर्ण । वेष्टग नं० १०८२ ।
विशेष-सारसमुच्चय के अतिरिक्त पूजाओं का संग्रह है । सार समुच्चय में १०४ पद्य है । अन्तिम पय निम्न प्रकार है
सार समुच्चै रह कशो गुर थाझा परवान । घानंद सुत दौलति नै मजि करि श्री भगवान ॥१०४॥
२४६. सुगुरु शतक-जिनदास गोधा। पत्र संख्या-७ । साइज-१४३ इन्च | भाषा-हिन्दी । . विषय-धर्म । रचनाकाल-सं० १८०० ] लेखन काल-x पूर्ण । वेष्टन नं. ५०२ 1
विशेष-१०१ पद्य हैं।
विषय-अध्यात्म एवं योग शास्त्र २४७. अध्यात्मकमल मार्शए-राजमल्ल । पत्र संख्या-१२ । साज-१०६x४३ इव । माषाहरकत | विषय-अध्यात्म । रचना कास-X । लेखन काल-सं० १६३१ फाल्गुण सुदी ११ । पूर्ण । वेष्टन नं० २३ ।
विशेष-सं० १९८२ में नंदकीर्ति ने अर्गलपुर (आगरा) में प्रतितिपि की थी। अब ४ अध्यायों में पृये। होता है।
२४८. अध्यात्म बारहखड़ी-दौलतराम 1 पत्र संख्या-६७ | साइज-६३४५३ इन्न । भाषा-हिन्दी (षध) | विषय-अभ्यास्म । रचना काल-सं० ११८ | शेखन काल-- | अपूर्ण । वेष्टन में० ३७