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विषय-कोश एवं छन्द शास्त्र ५८०. अमरकोश--अमरसिंह । पत्र संख्या-२५ | साइज-११४५ पथ | भाषा-संस्कृत विश्यकोष । रचना काल-x। लेखन काल-x | अपूर्ण | बेटन नं. १३४ ।
| भाषा-संस्कृत |
५८१. एकाक्षर नाममाला-सुधाकलश । पत्र संख्या-४८ | साइज-११xt विषय-कोष । रचना काल-x1 लेखन काल-x पूर्ण । वेष्टन नं. १५६ ।
५६२, छन्दरत्नावली-हरिराम । पत्र संख्या-२६ साइज-६१४५ इन्न । भाषा-हिन्दी 1 विषयछन्द शास्त्र 1 रचना काल-सं० १७०८ | लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० १११ ।
विशेष—पृष्ठ २११ पध हैंअंतिम-अप हंद स्नावली सारथ याको नाम । भूतन भरती ते मयों कहै दाश हरिराम ॥२५१
इति श्री चंद रत्नावली संपूर्ण । रागनभनिधीचंद कर सो समत सुमजानि । फागुण बुदी त्रयोदशी मालिखी सो जानि ॥
५८३. छन्दशतक-कवि वृन्दावन । पत्र संख्या-३१३ साइज-xxs इन | भाषा-हिन्दी । विषयछन्द शास्त्र । रचना काल-सं० १८४ माघ दी २ | लेखन काल-४ । पूर्ण | बेष्टन नं. ०३ |
५८४. नाममाला-धनंजय । पत्र संख्या-१६ | साज-१.४४ इन्च | भाषा-संस्कृत । विषय-कोष । रचना काल-XI लेखन काल-० १८३१ त बुदी १४ । पूर्ण । वेष्टन नं. १७ ॥
विशेष-स्त्रीवसिंह के शिष्य खुशालचन्द्र के पठनार्थ प्रतिलिपि हुई थी।
५५५. रूपदीपपिंगल-जैकृष्ण । पत्र संख्या-१० | साइज-१०x. इ । माषा-हिन्दी 1 विषावन्दशास्त्र । रचना काल-सं० १७७६ भादवा सुदी २ । लेखन काल-x। पूर्ण | वेष्टन न. ५७३ ।
विशेषचन का आदि अन्त माग निम्न प्रकार हैप्रारम--सारद माता तुम बी बुधि देहि दर हाल ।
पिगंल की वाया लिये वरन् आवन घाल ॥२॥ गुरु गणेश के चरण गहि हिय धारके विष्णु । कंवर भवानीदास का जुगत करें जै किवा ॥२॥