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धर्म एवं प्राचार शास्त्र]
विशेष:-राजनगर में तिखिपि हुई पी । प्रामवाट लातीय बाई मरा मे लिखवाया मा ।
६.१ श्रावकाचार-योगीन्द्रदेव । पत्र संख्या-१४ | साइज-२१:४५ च . माषा-अपभ्रंश । निवर-भर्म । रचना काल-X | लेखन काल-X I पूर्ण । वेष्टन नं० १४३ ।
विशेष-दोहा संख्या २२१ है।
६२. संबावर्षचासिका---गौतमस्वामो । पत्र संख्या- । साज-१६xइस । भाषा-प्रास्त । भिषय-धर्म । रचना काल-x | लेखन काल-- 1 पूर्ण | पेष्टन मं० ३८७ ।
३. संबोधपचासिका टीका-पत्र संख्या-१३ । साज-१x११ ३२ । भाषा-प्राकृत -संस्कृत 1 विषय-धर्म । रचना काल--- | लेखन काल ·४ | वेष्टन नं० ३८८ ।
१४. संयमप्रवहण-मुनि मेघराज । पत्र संख्या-४ । साइज-.४ । भाषा हिन्दी पद्य । विषय-प्रमे । रचना काल-सं० १६६। । लेखन ।.८ १६८; 'मी :५। ६. न. २३ ।
विशेष:
प्रारम्भ दोहा:---रिसह जिणेसर अगतिला नामि नरिंद महार ।
प्रथम नरेसर प्रथम जिन त्रिमोवन जन साधार ||१|| ची पंचम मानी सोलमठ जिनराय । शान्तिनाथ नगि शान्तिकर नर सुर प्रणाम पाय ||२||
धन्तिम-नाग धन्यासीगरपति दरिसपि पति पाणंद । औराजचंद सूरीतर प्रतपर जा लगि हु रविचंद ॥ ४३. | श्रीकपी । संगम प्रवहण मालिमगायउ नयर खम्भावन माहि ॥ संवत सोल अन इकसठई प्राणी अति उछाह || गछ । सरवथ ऋषि गुरु साधु शिरोमणि, मनि मेघराज तसु सीर ।। मुख गबपति ना भावह माषद पहना थास नगीस || १५२ ॥
॥ इति श्री संयम प्रबह सात
श्रुधाविका पुन्यप्रभात्रिका धर्मनिर्घाहिका सम्यक्त्वमूलद्वादसवत कारपूरत्रासितोक्मांगा अ श्राविकारुंध वाई
पक्षनाम।
मंचन १६८१ वर्षे श्राघाट मासे शुक्ल पड़े पुषिीमादित्यवारे स्नंभ मां लिखितं ऋषि कल्याणेन ।