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सिद्धान्त एवं चर्चा] संख्या विधान निरूपणे के अर्थि गाथा तीन करि कहै है। नाना जीवनि की अपेक्षा विवक्षित गुणस्यान वा मार्गपणास्थान नै सोद्धि धन्य कोई गुणस्थान त्रा मार्ग णास्थान में प्राप्त होइ । बहुरि उस हो विवक्षित गुण स्थान का मार्गणारयान को यावत्काल प्राप्त न हो इति सत्काल का नाम अंतर है ।
अन्तिम-विवक्षित मागंगा के भेद का काल त्रिय निक्षित गुणस्थान या अंतराल जेते कालि पाईए ताका वर्णन है । मार्गपणा के मेव का पलटना मा । अमत्रा मार्गणा के भेद का सद्भाव होते विवक्षित मुणस्थान का अंतराल मया मा ताकी बहुरि प्राप्ति भए विस अंतराल का अभाव हो है। ऐसे प्रलंग पाई काल का घर अतर कथन कीया है सो जानना ॥ इति संपूर्ण
पोथी शान आई की।
१६. झपणासार टीका-माधवचन्द्र ऋविध देव । पय संख्या-६.| साइज-१४४६३ च 1 माषा-संस्कृत | विषय-सिद्धान्त । रचना काल-४ । लेखन काल-X { पूर्ण । बेष्टन नं. ८ |
विशेष – प्राचार्य नेमिच द कन क्षणासार को यह संस्कृत टीका है । मूल रदना प्राकृत भाषा में हैं।
२०. गुणस्थान चर्चा- | पत्र संख्या-५२ । साइज-१२४७ ११ | माषा--हिन्दी । विषय-चर्चा । रचना काल-X । जेसन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० ८.२ ।
विशेष-चौदह गुणस्थानों पर विस्तृत चाट ( संदृष्टि ) है : २१ प्रति नं०२–पत्र संख्या-३६ | साज-१२४६ इन । लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन
२२. प्रति नं० ३.--पत्र संख्या-५१ । सहज-१०६x६५व । लेखन काल-* | पूर्ण । वेष्टन नं. ८६४ ।
२३. गोमदृतार-पा० नेमिचन्द्र । पत्र संख्या-५२६ । माइज-१४४५३. इञ्च | भाषा-पात । विषय-सिद्धान्त । रचना काल-X. लेखन काल-X । अपूर्ण । वेष्टन न. ६८६ ।
विशेष-७२ से थाने पत्र नहीं हैं । प्रति सस्कृत टीका सहित है।
२४. प्रति न० २-पत्र सं०-१६५ से ८४८ । साइज़ -१२३४५ इष्ण | लेखन कःल X । अपूर्ण । घटन. ७५
विशेष:-प्रत संस्कृत टीका सहित है।
२५. प्रति नं०३-पत्र संख्या ५५ । साइज-११४५ च । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं. ६.01. .
विशेषा-जोकारक मात्र है गायात्रों पर संस्कृत में पर्यायवाची शब्द हैं।