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________________ जैन संघ की इस अनुकरणीय एवं प्रशंसनीय साहित्य सेवा के फलस्वरूप राजस्थान के गांवों, करबों एवं नगरों में प्रथ संग्रहालय स्थापित किये गये तथा उनकी सुरक्षा एवं संरक्षण का सारा भार उन्हीं स्थानों पर रहने वाले जैन श्रावकों को दिया गया । कुछ स्थानों के भण्डार भट्टारकों, यतियों एवं पांड्यों के अधिकार में रहे ! ऐसे माहार वटाम्बर जैन समाज में अधिक है। राजस्थान में आज भी करीब ३. गांय, करबे तथा नगर प्रादि होंगे जहाँ जैन शास्त्र संग्रहालय मिलते हैं । यह तीन सौ की संख्या स्थानों की संख्या है भण्डारों की नहीं । भण्डार तो किसी एक स्थान में दो तीन से लेकर २५-३० तक पाये जाते है। जयपुर में ३० से अधिक भण्डार है, पाटन में बीस से अधिक भण्डार हैं तथा बीकानेर श्रादि स्थान में दस पन्द्रह के आस पास होंगे । सभी भण्डारों में शास्त्रों की संख्या भी एक सी नहीं है। यदि किसी किमी भण्डार में पन्द्रह हजार तक ग्रन्थ है तो किसी में दो सौ तीन सौ भी हैं। भण्डारों की प्राकार प्राकार के साथ साथ उनका महत्व भी अनेक दृष्टियों से भिन्न भिन्न है । यदि किसी भण्डार में प्राचीन प्रतियों का अधिक संग्रह है तो दूसरे भण्डार में किसी भाषा विशेष के अथों का अधिक संग्रह है। यदि किती भण्डार में सैद्धान्तिक एवं धार्मिक ग्रन्थों का अधिक संग्रह है तो किसी भएडार में काव्य, नाटक, रासा, व्याकरण, ज्योतिष आदि लौकिक साहित्य का अधिक संग्रह है। इनके अतिरिक्त किसी किसी भण्डार में जैनेतर साहित्य का भी पर्याप्त संग्रह मिलता है। ___ साहित्य संग्रह की इस दिशा में राजस्थान के अन्य स्थानों की अपेक्षा जयपुर, नागौर, जैसलमेर, बीकानेर, अजमेर आदि स्थानों के भण्डार संख्या, प्राचीनता, साहित्य-समृद्धि एवं विषय-वैविध्य आदि मभीष्टियों से उल्लेखनीय है । राजस्थान के इन मण्डारों में, ताडपत्र, कपडा, और कागज इन तीनों पर ही प्रश्र मिलते हैं किन्तु ताइपत्र के ग्रंथ तो जैसलमेर के भण्डारों में ही मुख्यतया संग्रहीत है अन्य स्थानों में उनकी संख्या नाम मात्र की है । कपड़े पर लिखे हुये ग्रंथ भी बहुत कम संख्या में मिलते हैं। अभी जयपुर के पार्श्वनाथ प्रथ भण्डार में कपड़े पर लिखा हुआ संवत १५१६ का एक प्रथ मिला है । इसी तरह के ग्रंथ अन्य भण्डारों में भी मिलते है लेकिन उनकी संख्या भी बहुत कम है। सबसे अधिक संख्या कांगज पर लिखे हये प्रथों की है जो सभी भण्डारों में मिलते हैं तथा जो १३ वीं शताब्दी से मिलने लगते हैं । जयपुर के एक भण्डार मैं संवत १३१६ ( सन १२६२ ) का एक मथ कागज पर लिखा हुर सुरक्षित है। अद्यपि जयपुर नगर को बसे हुये करीब २५ वर्ष हुये है किन्तु यहाँ के शास्त्र-भण्डार संख्या, प्राचीनता, साहित्य-समृद्धि एवं विषय चित्र्य आदि सभी दृष्पियों से उत्तम है। वैसे तो यहां के प्रायः प्रत्येक मन्दिर एवं चैत्यालय में शास्त्र संग्रह किया हुआ मिलता है किन्तु भामेर शास्त्र भण्डार, बड़े मन्दिर का शास्त्र भण्डार, बाधा दुलीचन्द का शास्त्र भण्डार, ठोलियों के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, अधीचन्दजी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, पांडे लूणकरणजी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, गोधों के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, पार्श्वनाथ के मन्दिर का शास्त्र भएटार, पाटोदी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार, लश्कर के मन्दिर
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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