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[ संग्रह (१) निर्वाण काण्ड, भक्तामर भाषा, पन मंगल, कराण मंदिर श्रादि स्तोत्र ! १२) ४८ प्रविधि सहित दिए हुए हैं एवं उनके फल मी दिये हुए हैं। ये भक्तामर स्तोत्र के यंत्र नहीं हैं । (३) गज करणादि की औषधि, हितोपदेश भाषा, लाला तिलोकचंद की स. १८१२ की जम कुडली मी दी
(४) कवित- केई खंड खंड के निरवन कू जिति पायो ।
पलक में तोरि डार था किलो जिन धारको ।। म्हा मगरूर कोऊ सूझत न सर ।
राहु केत सौ गरूर है वहीया बळे सारको । मोर है हजार च्यारि प्रसवार और ।
लगी नहीं बार जोग विरच्यौ वजार को ।। . माधव प्रताप सेती जैपुर सवाई मांझ ।
___ मारि कडा(चो मग महाजना मलारको ।। (५) नौ कोठे में बीस का यंत्र--
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मंत्र का फल मी दिया।
२३३. गुटका नं. १४४ । पत्र संख्या-२२ । साइज-६४४३ ईन् । मा-हिन्दी लेखन काल-x1 अपूर्ण । वेष्टन नं० १२५६ ।
विशेष - सामान्य पाठों का संग्रह है।
३४. गटका ८१४५ पत्र संख्या-७५ साइज-4xच। माषा-हिन्दी-लेखन काम-x. अपूर्ण । वेष्टन नं. १२५७ ।
विशेष-बखतराम कृत श्रासाबरी है पथ संख्या ३६ है।
८३५. गुटका नं० १४६ । पत्र संख्या-३ से २७ । साइज-६x४ इन्च । माषा-हिन्दी । लेखन काल-। अपूर्ण । बेन्टन ने० १३१८ ।