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________________ १६० [ संग्रह (१) निर्वाण काण्ड, भक्तामर भाषा, पन मंगल, कराण मंदिर श्रादि स्तोत्र ! १२) ४८ प्रविधि सहित दिए हुए हैं एवं उनके फल मी दिये हुए हैं। ये भक्तामर स्तोत्र के यंत्र नहीं हैं । (३) गज करणादि की औषधि, हितोपदेश भाषा, लाला तिलोकचंद की स. १८१२ की जम कुडली मी दी (४) कवित- केई खंड खंड के निरवन कू जिति पायो । पलक में तोरि डार था किलो जिन धारको ।। म्हा मगरूर कोऊ सूझत न सर । राहु केत सौ गरूर है वहीया बळे सारको । मोर है हजार च्यारि प्रसवार और । लगी नहीं बार जोग विरच्यौ वजार को ।। . माधव प्रताप सेती जैपुर सवाई मांझ । ___ मारि कडा(चो मग महाजना मलारको ।। (५) नौ कोठे में बीस का यंत्र-- । मंत्र का फल मी दिया। २३३. गुटका नं. १४४ । पत्र संख्या-२२ । साइज-६४४३ ईन् । मा-हिन्दी लेखन काल-x1 अपूर्ण । वेष्टन नं० १२५६ । विशेष - सामान्य पाठों का संग्रह है। ३४. गटका ८१४५ पत्र संख्या-७५ साइज-4xच। माषा-हिन्दी-लेखन काम-x. अपूर्ण । वेष्टन नं. १२५७ । विशेष-बखतराम कृत श्रासाबरी है पथ संख्या ३६ है। ८३५. गुटका नं० १४६ । पत्र संख्या-३ से २७ । साइज-६x४ इन्च । माषा-हिन्दी । लेखन काल-। अपूर्ण । बेन्टन ने० १३१८ ।
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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