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________________ किया जा रहा है और शीघ्र ही करीम २५०० पदों का एक वृहद् संग्रह प्रकाशित करने का विचार है । जिससे रूम से कम यह तो पता चल सकेगा कि जैन विद्वानों ने इस दिशा में कितना महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। गुटकों का महत्त्व वास्तव में यदि देखा जाये तो जितना भी महत्त्वपूर्ण एवं अनुपलब्ध साहित्य मिलता है उसका अधिकांश भाग इन्हीं गुटकों में संग्रहीत किया हुआ है। जैन श्रावकों को गुटकों में छोटी छोटी रचनायें संग्रहीत करवाने का बड़ा चाव था। कभी कभी तो वे स्वयं ही संग्रह कर लिया करते थे और कभी अन्य लेखकों के द्वारा संग्रह करवाते थे। इन दोनों भएडारों में भी जितना हिन्दी का नयीन साहित्य मिला है उसका आधे से अधिक भाग इन्हीं गुटकों में संग्रह किया हुआ है । दोनों भण्डारों में गुटकों की संख्या ३०५ है । यद्यपि इन गुटकों में सर्वसाधारण के काम आने वाले स्तोत्र, पूजायें, कथायें आदि की ही अधिक संख्या है किन्तु महत्त्वपूर्ण साहित्य भी इन्हीं गुटकों में उपलब्ध होता है । गुट के सभी साइज के मिलते है। यदि किसी गुटके में - पन्नही मिली निको मुनाफे में ४ : ५.० पत्र तक हैं 1 ठोलियों के मन्दिर के शास्त्र भण्डार के एक गुटके में ६५४ पत्र है जिनमें ४७ पूजाओं का संग्रह किया हुआ है। कुछ गुटकों में तो लेखनकाल उसके अन्त में दिया हुया होता है किन्तु कुछ गुटकों में बीच बीच में भी लेखनकाल दे दिया जाता है अर्थात् जैसे जैसे पाठ समाप्त होते जाते हैं वैसे वैसे लेखनकाल भी दे दिया जाता है। इन गुटकों में साहित्यिक एवं धार्मिक रचनाओं के अतिरिक्त आयुर्वेद के नुसखे भी बहुत मिलते हैं। यदि इन्ही नुसखों के आधार पर कोई खोज की जावे तो यह आयुर्वेदिक साहित्य के लिये महत्त्वपूर्ण चीज प्रमाणित हो सकती है। ये नुसखे हिन्दी भाषा में अनुभव के आधार पर लिखे हुये हैं। आयुर्वेदिक साहित्य के अतिरिक्त किसी किसी गुटके में ऐतिहासिक सामग्री भी मिल जाती है। यह सामग्री मुख्यतः राजाओं अथवा बादशाहों की वंशावलि के रूप में होती है । कौन राजा कब राज्य सिंहासन पर बैठा तथा उसने कितने वर्ष, कितने महिने एवं कितने दिन तक शासन किया आदि विषरण दिया हुआ रहता है। अन्य सूची के सम्बन्ध में मस्तुत ग्रन्थ-सूची में जयपुर के केवल दो शास्त्र भण्डारों की सूची है। हमारा विचार तो एक भण्डार की और सूची देना था लेकिन ग्रन्थ सूची के अधिक पत्र हो जाने के डर से नहीं दिया गया । प्रस्तुत प्रन्थ सूची में जिन नधीन रचनाओं का उल्लेख पाया है उनके आदि अन्त भाग भी दे दिये गये हैं जिससे विद्वानों को ग्रन्थ को भाषा, रचनाकाल, एवं ग्रन्थकार के सम्बन्ध में कुछ परिचय मिल सके।
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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