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________________ २५८ ] [ गुट के एवं संग्रह ग्रन्ध ५०३. स्तवन-पत्र संस्था-१ | साइज-10xts | भाषा-फारसी। लिपि-देवनागरी । विषयस्तवन । रचना काल-X । लेखन काल-४ । पूर्ण । वेष्टन नं० १४ । विशेष-प्रदालत में मुकदमा पेश होने का पूरा रूपक है | जिस प्रकार अदालत में अर्ज की जाती है ठीक उसी तरह भगवान से प्रार्थना की गई है। गुटके एवं संग्रह गन्थ ५.४. गुटका नं० १-पत्र संख्या-२७५ । साज-११४५ दश्न । भाषा-हिन्दी संस्कृत । लेखन काल-सं. १८५३ । पूर्ण । मुख्य रूप से निम्न पाठों का संग्रह है-- (१) प्रत विधान बासों-संगही दौलतराम । पत्र संख्या-१ से २३ । भाषा-हिन् । स्थना काल-सं० १७६७ श्रासोज हुदी १० । लेखन कान- सं० १८१८ श्रासोज सुदी ३ 1 पूर्ण । प्राम-प्रश्रम मिरों स्वामी वृषभ जिनंद, श्रादि तीर्थ कर सुस्त्र के औद । तो नमो तिथंकर वीस है, नमो सनमति सदा सिंव मुम्बधाम । नमो परमेशी जी पत्र पद, ता समिरे होय सुख अभिराम । ___ तो वरत की मधि जैन का ।। १ ॥ रस प्रोजली - अहो तप रस प्रोजली मास बैशाख, सुकल तानसी जी करि अभिलाष . तो प्रत चौईस अति निर्मला, तीन स भोजली जल मन भाय ।।
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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