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________________ गुदके एवं संग्रह ग्रन्थ 1 बहुरी अल लेन संख्या नहीं, ईसु चटाई जे जिन पद जाप तो वरत की भवि जैन का । १४१ ।। नट अन्तिम पाटीदी जी नम का तनी थान, राज करें बुपसिंह कुल मानु पोन छत्तीस लीला करें, गट श्रम कोट वन उपवन वाय । महल तलाव देवल छ, श्रावण धर्म चलै बहु माय ।' तो बरत० ।। बही जगत कीरति मट्टारक परमान, मूल संघी सरस्वती गुच्छ जान | तो हुदा मुनि पाटई, ब्रह्मचार याचारिज पंडित भाय ॥ और धारयिका जी संग मैं, मानत श्रावभ यह अमनाय || तो ॥ यही पानाथ मैनाली जी गाय, तहाँ पंडित तुलसी जी दात रहाय तो सास्त्र समूह विद्या व करह, निरंतर धर्म विशव सुख स्यों काल पूरा करें। तास चरचा रचि गंध पसाय ॥ तो ॥ . अहो साह मामा सुतवर श्रहो धनपाल, युवक तो सुत दौलतिराम हुन वरत विधान राशौ रच्यो, श्री पाणी गोत परसिद्ध महो मोही, खंडेलवाल जिन मतिय कहाहि वचन दिशास | माले, करहि चस्वा जिन 1 तो भाषण अम्बे मारग श्रोन धर्म नहीं ऊपरे सठु परिवार बूंदी गट वास || तो० ॥ ताको चतुरभुज रूप बसाय । जिन गुगा कहि अभिराम || - ताथै पुत्र हरराम सदाराम | तो || ง X X X श्रहो अहो संवत् सतरा स सदि लोन, बासोज सुक्ल दशों दिन परवीन | तो लगन हुरत सुभ घरी वार, गुरु वार नक्षत्र जो ता मोहि ॥ मंथ पूर भयो भविष संबोधन यह उपयोग || अहो दोष से दवस्या भी बंद निवास, सात से पचास बेरूका तास । श्रहो तो एक सौ इकसठ सात कला, दौलतराम विश्व पुरयाय ।। अविकरि मन च काय सों, अनुक्रम सूर सुख शिव पद पाप ॥ २०१ || ॥ इति श्रीमत विधान राम्रो संगही दौलतराम त संपूर्ण (२। १४८ व्रतों के नाम पत्र संख्या २२२४१ [ २४६ (३) पूजा रोष संग्रह संख्या १ से २५१ तक 1 - विशेष ६३ प्रकार के पात व पूजा स्तोष आदि का संग्रह है। टका के कुछ वर्षों की संख्या २७५ है । ५०५. गुटका नं २ - पत्र संख्या ४ साइज - ३x६ इच। भाषा - हिन्दी | लेखन काल -x 1 श्रपूर्ण ।
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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