SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६०] [ गुदके एवं संग्रह अन्ध विशेष-आयुर्वेदिक नुसखे दिये हुये हैं। एवं मंत्रों का संचालन है। सभी मंत्र घायुर्वेद में सम्बन्धित हैं। स्तोत्र श्रादि भी हैं। ५०६. गदका नं८३-पत्र संख्या-२ साइज-xt च । भाषा-प्राक्त-पंस्कृत । लेखन काल-x। पूर्ण। विशेष-नित्य नियम पूजा पाठ है। ५०७. गुटका न.४-पत्र संख्या-20 साइज-X: इज 1 माषा-हिन्दी लेखन काल-X17 | निम्न पाठों का संभह हैं:-- ।१)ज्ञानसार-घुनाथ । पत्र सं. १ से ३४ । भाषा-हिन्दी। पद्य सस्या-७० । भारम्भ - हप्पय छंद गनपति मनपति प्रथम सकल शुभ फल मंगल कर । स्वरमति अति मति गृद देत प्रारूट हंस पर ।। निगम धरन जग मरन करन लगि चरन गंगधर । अमर कोटि तेतीस कहत रघुनाथ जोरकर ।। भनि तिरन हुस्न जामन मरन सरनि जानि इह देह वर । श्री हरि पद की 43 गुननि गाऊं मन दच कार का ||१|| दोहा-विरसावन सब सुखद अश्व हर ज्ञान उदीत । गंगनीर गुरु के चरन वत्त सुधि गति होत ||२|| तुम सर्वच दयाल प्रभु कहो रूपा करि बात | श्रनत रूप हरि गति पलस्त्र लग्ने कौन विधि जात ||३|| नव अपनी जन जामि मन मानि करी प्रतिपाल। सबै दयाल तिह काल कर बोले बचन साल || si] संत दशा वर्णन . सबया जग सी उदारा मन वास किये नास मन, शरत न आस रघुनाथ यौ कत है। झोधी से न क्रोध, न विरोधी से गिरोध, नहि लोगी सौ प्रभोध नित ने भिवक्त है ।। जीव सकल समानि समझे न कहु अनुराग दोग, थभिमान प्रम नो देहत है। मान जल मंजन मलीन कर्म मंजन के, रात्रै हैं निरंजन सौ, अंजन रहता है ॥१६॥ x अमल रूप माया मिल्यो मलनि भयो सब ठाव । सोनी सोनी संग तें भूषन नाना नांव ॥१४३||
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy