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[ गुदके एवं संग्रह अन्ध विशेष-आयुर्वेदिक नुसखे दिये हुये हैं। एवं मंत्रों का संचालन है। सभी मंत्र घायुर्वेद में सम्बन्धित हैं। स्तोत्र श्रादि भी हैं।
५०६. गदका नं८३-पत्र संख्या-२ साइज-xt च । भाषा-प्राक्त-पंस्कृत । लेखन काल-x।
पूर्ण।
विशेष-नित्य नियम पूजा पाठ है।
५०७. गुटका न.४-पत्र संख्या-20 साइज-X: इज 1 माषा-हिन्दी लेखन काल-X17 |
निम्न पाठों का संभह हैं:--
।१)ज्ञानसार-घुनाथ । पत्र सं. १ से ३४ । भाषा-हिन्दी। पद्य सस्या-७० ।
भारम्भ - हप्पय छंद
गनपति मनपति प्रथम सकल शुभ फल मंगल कर । स्वरमति अति मति गृद देत प्रारूट हंस पर ।। निगम धरन जग मरन करन लगि चरन गंगधर । अमर कोटि तेतीस कहत रघुनाथ जोरकर ।। भनि तिरन हुस्न जामन मरन सरनि जानि इह देह वर । श्री हरि पद की 43 गुननि गाऊं मन दच कार का ||१||
दोहा-विरसावन सब सुखद अश्व हर ज्ञान उदीत ।
गंगनीर गुरु के चरन वत्त सुधि गति होत ||२|| तुम सर्वच दयाल प्रभु कहो रूपा करि बात | श्रनत रूप हरि गति पलस्त्र लग्ने कौन विधि जात ||३|| नव अपनी जन जामि मन मानि करी प्रतिपाल। सबै दयाल तिह काल कर बोले बचन साल || si]
संत दशा वर्णन . सबया
जग सी उदारा मन वास किये नास मन, शरत न आस रघुनाथ यौ कत है। झोधी से न क्रोध, न विरोधी से गिरोध, नहि लोगी सौ प्रभोध नित ने भिवक्त है ।। जीव सकल समानि समझे न कहु अनुराग दोग, थभिमान प्रम नो देहत है। मान जल मंजन मलीन कर्म मंजन के, रात्रै हैं निरंजन सौ, अंजन रहता है ॥१६॥
x अमल रूप माया मिल्यो मलनि भयो सब ठाव । सोनी सोनी संग तें भूषन नाना नांव ॥१४३||