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[कान्य एवं चरित्र
अंतिम पुष्पिका-ति निरवविद्यामंडनमंडितपंडितमहली मंडितस्य पटतचक्रवर्तिनः श्रीमतविनयचन्द्रपडितस्य गुरोरतेबासिनो देवनंदिनानः शिष्येण सकलकलोवचारचातुरीचंद्रिकाचा नेमिचन्द्रण विरचितारांद्विसंधान कविर्धनंजयस्य राघव पांडवीयापरानमकाव्यस्य पदकौमुदीनां दधानाया टीकायो श्रीरामच्यावर्ण नाम अष्टादश सर्गः ।
टीका का नाम पदकौमुदी है।
४६१. धन्यकुमार चरित्र सकलकीर्ति । पत्र संख्या-४ | साइज-११६४४ रम्च 1 भाषा-संस्कृत । विषय-काव्य । रचना काल-४ : लेखन काल-सं० १६५६ | पूर्ण । वेष्टन ने० २३७ ।
प्रशस्ति-संवत् १६५६ वर्षे कार्तिक बुरी ७ रविवासरे भी मूलसंधे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्री कुन्दकुन्द! चार्यान्वये भट्टारक जशकीर्तिदेवा तत्प?' भट्टारक थी ललितकीर्तिदेवा तत् शिष्य "०" श्रीपाल स्वयं पना गृहीत । लिखितं चन्देरीगढ़दमें वास्तव्य धकधर पातिसाहि राज्ये प्रवर्तते ।
४६४. धन्यकुमार चारित्र--ब्रनेमिदत्त । पत्र संख्या-३० । साइज-१.४५ च । भाषा-संस्कृत । विषय- चरित्र । रचना काल-x | लेखन काल-X | पूर्ण । वेष्टन नं० २३८ ।
विशेष—प्रारभ्म के पत्र जीणं हैं।
४५. धन्मकुमार चरित्र-खुशालचन्द । पत्र संख्या-५०१ साइज-१.४५ च । माषा-हिन्दी (पच) | विषय-चरित्र । रचना काल-xलेखन काल-x। पर्य। टन मं०६१६ ।
विशेवा-तौन प्रतियाँ और है।
४६६. प्रद्युम्नचरित्र-पत्र संख्या-११. 1 साज-६xx इश्च 1 भाषा-हिन्दी | विषय-चरित्र । रचना काल-X । लेखन काल-- | अपूर्ण । वेष्टन नं. ११११ ।
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४६७. प्रद्युम्नचरित्र- पत्र संख्या-४ | साइज-११६४५३ इंच । भाषा-हिन्दी (पथ) । विषय चरित्र । स्नना काल-सं० १४११ भादवा चुदी ५ । लेखन काल-सं १३०५ पासोज बुद्दी ३ मंगलवार । पूर्ण । वेष्टन न० ६१२ ।
विशेष-अधुन चरित्र की रचना किसी अग्रवाल बन्धुने को पी ! रचना की माषा एवं शैली अच्छी है । रचना का प्रादि अन्त माग निम्न प्रकार है
प्रारम--सारद विंणु मति कवितु न होइ, सरासर गवि बूभाई की।
सौस धार पक्षामई सरसतो, तिन्दि करें दुधि होह कह दुती ||१|| मधु को सारद सारद करव, तिस कर अंतु न कोऊ लहई । जियावर मुखद खपि गाय बाधि, सा सारद पपबहु परियाणि ॥२॥ अठदस कमल सरोवर कास, कासमीर पुरस (g) निकाम् । इंस नदीकर लेखाणि देश, कवि सभार सरस पभो ॥३॥