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[ स्फुट रचनायें
तम इक बीन कही मुणि राज्ये 1 नरहि मेध को जम काये ॥ तब उह ब्रपति वाक्य सत्य कीन्हों । नरहि मैध सायत रचि दीन्हो ।। नर सव चौरासी के पाए । यथ्यो विन ताहा महोत कहाये ॥ दुन्य कहि व्रपति मनुष सत चाहै । मिटै विम यह होन कराई ।। ताहा मुनी तप करै स त्याकु । पकडि मंगाय होन किये ज्या ।। हाहाकार बोहोत तहां होयो । व्रपति दुष्टतै काहा कर धोयो । तत्र वाहा मुनिराज सब पाये । जैनसन प्राचार्य ताहाये ॥ बड़ा बढ़ा सब मुनि का स्वामी ! जोग भ्यान श्री अंतरयामी ।। मगर सुफल सध्यान लगायो। चक पूरी सु जाप जजायो । महरी गुडो जिन थापन कीनो । शांत मई तूप ग्यान उपीनो।। तब श्राय व्रप बेदन कीनी । ममा करो अपराध मुनीनी || व्रपति कहै मुनिराज दयालं । विन मिटै सो करो कपास । नप सु कही मुनी सर वानी। लग्यो पाप मानुष को पानी ।। स्व छातम ऋत नीदत राजा। परयो पाय मुनि के ड समाजा || कही भूप मम अभ मेटो। तुम पारस्य पुनिराज सु भेटो ।। कहीं मुनि मुनि हे ब्रप राजा । श्री जिगाधर्म सर्ण तुव घाना ॥ दया रूप जिग्गा धर्म प्रकासा । मिटे पाप पुषि निर्मल मासा ।। श्रावक धर्म ब्रपति मुनि लीन्हो | मीटे पाप निर्मल अंग तीन्हीं ।। नगर खंडेल गांव बयासी। अन्या छा छत्री त्या वासी ।। द्वय सुनार बल्या छा त्याही। कही भूप ये दोउ ब्याही । दोउ का दीहाडी न्यारी । श्रावक धर्म मूल सुखकारी ।। इक कही प्रामणी देवी। दूजा कसु मोही तेवी ।। चोरासी सुगोत्र श्रावक का । नीक रनौ भली धुधि मुखका ।। गोत्र वस अरु नाम की हाडी। जिणाम धर्म तकनीकी वाडी ।।
अन्तिम-संवत १५ सह गिनो अम्दनीवासी साल ।
चत कम्न रसि गुरू मुम प्रभ पूर्यास ।। १७ ॥ मन वंछित पठियो मनै कुल श्रावक गुणसार । नंद नंद देदत सुख, न देचा तिर भार ।। ११० ।।
इति श्री प्रप श्रावक मोत्र गुणसार नंद नंद रचिते संपूर्ण । सुमः ।।