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स्कूट रचनायें ]
विशेष – गोत्रों के नाम दिये हुये हैं ।
४८२ चौरासी गोत्र - पत्र संख्या - १ | साइज - २१३४१० इव । भाषा - हिन्दी | विषय - इतिहास | रचना काल -X / लेखन काल - सं० १८९२ | पूर्ण | बेटन नं० १६४ ।
विशेष - खण्डेलवालों के चौरासी गोत्रों के नाम है 1
४८३. चौरासी गोत्रोत्पत्ति वर्णन -- नन्दनन्द | पत्र संख्या - १२ | साइज - ६ x ३३ इत्र | भाषाहिन्दी पय विषय - इतिहास । रचना काल -X | लेखन काल - सं० १८८६ । पूर्ण वेष्टन नं० १८४ |
विशेष – १ संख्या - १११ है । सुडेलवालों के ८४ गोत्रों की उत्पत्ति का वर्णन है।
प्रारम्भ दोहा - श्री युगादि रिसमादि गुण, सस्य श्राय गुण गाय ।
श्रावक समय रचि श्रतुल सु संपति धाय ॥१॥ वैस्य र मैं उच्य १६, धर्म दया कौ पनि । श्रय कल्यान आवक प्रगट, रच्ये गोत्र कुल माम ||२॥
- आवक व्रत तीर्थ कर सेय सुध्यारहि व ए पालत है । च्यार ही वर्णं सुकर्म क्रिया तब मुक्ति गया सु भालत हैं ।
श्रीवरवर्द्ध सुमान्य स्वामी जु मुक्ति गया शुभ तालत हैं । फेर वर्स छह सतीयासिंह वा तब पुनि प्रगटालत है ।
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चौपाई पराजित मुनि नाम सुस्वामी । धान सघाडा मन कहामी ॥ अपराजित मुनि तप सु प्रभाक | जिसेनाचार्य भये ताक ॥
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मधि थाथा ||
श्री जिपसैनचार्य तन होये । संवत् येक साल मध्य जोये || जिग्रसेनाचार्य मध्य सारा। छह सात मुनि काजु सिधारा ॥ प्रभु पद्म पद्म ध्यान तहां घर्ता । श्री जिया जोग र मुनि कर्ता || फिर अवसर इक सहु श्राया | मम खंडेला वन निहुँ पाच सह पंक्तावलि तह | भूत भवषित वर्त ज्ञान लहू ॥ मूनी सकल मुनि धुनि की वानी । हैगी यह उपसर्ग विधानी || होनहार उपसर्ग श्री । होनहार नहि मिटें कठही ! सावधान मुनि ध्यान सहावा | जोग सु ध्यान समर्थ सु जूवा ॥ आम लगे चतुराक्षि खंडेलें । साह एक वित मरी उपजेलै । ताहो नरनारी बहुत प्रति होये । वादां पति चाँता उपजोये ॥ तबै पति सत्र बीघ वूडाये । विन्न मिटे सो करो दुजोये ॥
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