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________________ स्फुट रचनायें ] [ २५५ लोखी गणेश लाल कवी स्वयं कृत । लिखायतं राज्य श्री चंपाराम का नंद चिरंजीव || पुत्र पौत्र कुल वृद्धि सुख संपति फल प्राप्ती सत्येव वाक्यं ॥ ११९ ॥ ४८४. जैनमार्ता - भान संश- ६०३ | राज - १२४६ श्च । भाषासंस्कृत । विषय-सिद्धान्त एवं आचार । रचना काल -X | लेखन काल - सं० १८५३ सावन मुदी १५ । पूर्व । न नं० १६७ । विशेष-म० महेन्द्रभूषण ने प्रतिलिपि कराई थी । ग्रन्थ का दूसरा नाम कर्म विपाक चरित्र भी हैं। प्रारम्भः — श्रखंडात्मज्ञानलजनितः तीव्रातिशयितञ्चलः । कालावलीनिधयः परिदग्धाखिलमलः || महासिद्धः सिद्धः श्रुतचस्यपकेति । महावीरस्वामी जयति जगतो नाथ उ दतः ॥ १॥ अन्तिम स्तीर्थकरो महात्मा महाशयः शीलमहावुराशिः । नमोस्तु तस्मै जगदीश्वराय श्रीमन्महावीर जिनेश्वराय || || अन्तिम पुष्पिका - इति श्रीमज्जैनमा महापुराणे श्रीमद्वारक जिनेन्द्रभूषण पट्टाभरण श्री भट्टारक महेन्द्रभूषण दुतिय नाम कर्मविपाक चरित्र कृते चित्रांगदाय भोवाप्तवनी नवमोऽधिकार समाप्तयंप्रभ ॥ ४८४. नंदबत्तीसी - हेमचिमल सूरि । पत्र संख्या ४ साइज - २०४४ । भाषा - हिन्दी | रचना काल - सं० १६० । लेखन काल-सं० १६ । पूर्ण । श्रेष्टन नं० २०४ । आरम्भ - गाथा - श्रागमवेदपुराणमये जंजकबंति कवीयथ तं शारद तुह पसाग । चूहा - पहिल प्रयामं सरसती, जगमति लील विलास | श्री जिवर शंकर नमु मांग बुद्धि पयास ||१|| श्री श्रविरल बुद्धि धण जन मन रंजन जे ? नंद बीसी जे सुगड चरीयर चंपुरि तेह || || नगर हि ठाण जे तेह तदा बोलेस नंद बत्तीसी पई एहज नामट व्योस || चौपईपुर पाडलीय नगर अभिराम । पुहति प्रगट जेह नु नाम ॥ वरण वरण बसि तहाँ लोक । जाणस जाण तथा तिहा योक || सजल बरोबरनि वन खंड | राजा लोक न लेत्रि दंड || गट मठ मंदिर मैडी पोलि । सुरासी चहुंटा नीरा इलि ||
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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