SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ गुरुके एयं संग्रह अन्य १८७४ श्राषाढ सदी ४ माऊ हिन्दी (१६) घादित्यवार कथा १६) नेमिनाय चरित्र अजयराज . सं० ) पद्य संख्या - ०६४ । भाषा-हिन्दी | विषय-चरित्र । रचना कारन- १७१३ अषाट सुदी १३ । जम्बन कालनेत्र सुदी - 1 प्रारम्भ – श्री जिनवर बंदी सबे, ग्रादि अंत चवासै । शान पुजि गुण सारिखा, नमो त्रिभुवन का ईस ||२|| ताम नमि जिगर को बंदी बारंबार । तास चरित वस्त्राणिस्यो, दुल रधि अनुसार |॥२॥ म भाग-जो होइ वियोग तिहारी, निफरत है जनम हमागे । ताते संजम यध तजिए संसार तणां मुख मजिए॥ जल दिन मान जिव फिम मीन, तैसे तुम याबीन । तुम भाव दया की कीन्हा, सत्र जीम हुदाई जी । अन्तिम भाग -अजयराज इह कीयो वस्वाण, राज सवाई जयसिंह जाण । अंधावती सहरै सम धान, जिन भनि र जिम देव विमा ।। नीर निवाण सोहै वन राई, बेलि गुलाब चमेली जाई । चंपो मरव अरे संत्रति, यो हौ जाति नाना विध कीती ॥२५॥ बहु मेवा विधि सार, वरणत मोहि लामें बार । गट मन्दिर *लु क्यो न जाइ, सखिया लोग बसे अधिकाइ ॥ ५ ॥ ताम जिन मन्दिर इन सार, तहां विराज श्री नेमिकुमार । स्थाम मूर्ति सोभा अति घणी, ताकी वापमा जाइ ने गग) ।। ६.13 जाकै भाग उदै म होइ, करि दरसण हरचे भेट सोई । श्रात्रै जातै सरावग धगा, कार्ट कर्म स. अापण ॥२६॥ अनेराज तहाँ पूजा कराई, मन वच तन प्रति हस्थ धराई । निति प्रति बंद ते वारंवार, तारण तरग्य क. भन पार ।।५।। ताको चरित कहो मन अपणा बुधि साह उपआई । पंडित पुरुष हंसो मत्ति कोई, भुल चूक याम जो हाई ॥२६॥ संवत् सतरासें त्रैणवे, मास प्रसाद पाई वर्णयो। तिथि तेरस अथरी पाख, शुक्रवार शुभ उतिम दाख । इति श्री नेमिनाथजी की. चौपई संपूर्ण ।
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy