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प्रकाशकीय
श्री महावीर प्रन्थमाला का यह सातवां पुष्प है तथा राजस्थान के जैन ग्रन्थारों की मन्थ सूची का तीसरा भाग है जिसे पाठकों के हाथों में देते हुये बड़ी प्रसन्नता होती है। प्रन्थ सूची का दूसरा भाग सन् १६५४ में प्रकाशित हुआ था। तीन वर्ष के इस लम्बे समय में किसी भी पुस्तक का प्रकाशन न होना अवश्य खटकने वाली बात है लेकिन जयपुर एवं अन्य स्थानों के शास्त्र भण्डारों की छान बीन तथा सूची बनाने आदि के कार्यों में व्यस्त रहने के कारण प्रकाशन का कार्यं न हो सका । सूची के इस भाग में जयपुर के दि० जैन मन्दिर बधीचन्दजी तथा ठोलियों के मन्दिर के शास्त्र भरडारों के ग्रन्थों की सूची दी गयी है। ये दोनों ही मन्दिर जयपुर के प्रमुख एवं प्रासेद्ध मन्दिरों में से है । दोनों भण्डारों में कितना महत्वपूर्ण साहित्य संग्रहीत है यह बताना तो विद्वानों का कार्य है किन्तु मुझे तो यहाँ इतना ही उल्लेख करना है कि बधीचन्दजी के मन्दिर का शास्त्र भण्डार तो १८ वीं शताब्दी के सर्व प्रसिद्ध विद्वान् टोडरमलजी की साहित्यिक सेवाओं का केन्द्र रहा था और आज भी उनके पावन हाथों से लिखी हुई मोक्षमार्गप्रकाश एवं आत्मानुशासन की प्रतियां इस भण्डार में संग्रहीत हैं। टोलियों के मन्दिर के शास्त्र मण्डार में भी प्राचीन साहित्य का अच्छा संग्रह है तथा जयपुर के व्यवस्थित भण्डारों में से है ।
इस तीसरे भाग में निर्दिष्ट भण्डारों के अतिरिक्त जयपुर, भरतपुर, कामां, डीग, दौसा, मौजमाबाद, बसवा, करौली, बयाना आदि स्थानों के करीब ४० भण्डारों की सूचियां पूर्ण रूप से तैय्यार हैं जिन्हें चतुर्थ भाग में प्रकाशित करने की योजना है । ग्रन्थ सूचियों के अतिरिक्त हिन्दी एवं अपभ्रंश भाषा के ग्रन्थों के सम्पादन का कार्य भी चल रहा है तथा जिनमें से कवि सधारू कृत प्रय ुम्नचरित, प्राचीन हिन्दी पद संग्रह, हिन्दी भाषा की प्राचीन रचनायें, महाकवि नयनन्दि कृत सुदंसणचरिउ एवं राजस्थान के जैन मूर्त्तिलेख एवं शिलालेख आदि पुस्तकें प्रायः तैय्यार हैं तथा जिन्हें शीघ्र ही प्रकाशित करवाने की व्यवस्था की जा रही है।
हमारे इस साहित्य प्रकाशन के छोटे से प्रयत्न से भारतीय साहित्य एवं विशेषतः जैन साहित्य को कितना लाभ पहुँचा है यह बताना तो कुछ कठिन है किन्तु समय समय पर जो रिसर्च स्कालर्स जयपुर के जैन भरडारों को देखने के लिये आने लगे हैं इससे पता चलता है कि सूचियों के प्रकाश में थाने से जैन शास्त्र भण्डारों के अवलोकन की ओर जैन एवं जैनेतर विद्वानों का ध्यान जाने लगा है तथा वे खोजपूर्ण पुस्तकों के लेखन में जैन भण्डारों के प्रन्थों का अबलोकन भी आवश्यक समझने लगे हैं ।
सूचियां बनाने का एक और लाभ यह होता है कि जो भण्डार वर्षों से बन्द पड़े रहते हैं वे भी खुल जाते हैं और उनको व्यवस्थित बना दिया जाता है जिससे उनसे फिर सभी लाभ उठा सकें । यहाँ