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४. अमरपाल इन्होंने 'श्रादिनाथ के पंच मंगल' नामक रचना को संवत् १७७२ में समाप्त की थी। रचना में दिये हुये समय के आधार पर ये ५८ श्री शताब्दी के विद्वान् ठहरते हैं। ये खण्डेलवाल आति में उत्पन्न हुये थे तथा गंगवाल इनका गोत्र था 1 देहली के समीप स्थित जयसिंहपुरा इनका निवास स्थान था। आदिनाथ के पंचमंगल के अतिरिक्त इनकी अन्य रचना अभी तक उपलब्ध नहीं हुई है।
५. आज्ञासुन्दर ये खरतरगच्छ के प्रधान जिनवर्द्धनसूरि के प्रशिष्य एवं प्रानन्दसूरि के शिष्य थे। इन्होंने संवत् १५१६ में विद्याविटाई की माता समाप्त होगी। इसमें १६ सच है । रचना अच्छी है।
६. उदैराम उदराम द्वारा लिखित हिन्दी की २ जखडी अभी उपलब्ध हुई हैं। दोनों ही जखड़ी ऐतिहासिक हैं तथा भट्टारक अनन्त कीति ने संवत् १७३५ में सांभर (राजस्थान) में जो चातुर्मास किया था उसका उन दोनों में वर्णन किया गया है । दिगम्बर साहित्य में इस प्रकार की रचनायें बहुत कम मिलती है इस : दृष्टि से इनका अधिक महत्व है । वैसे भाषा की दृष्टि से रचनायें साधारण है।
७. ऋषभदास निगोत्या ऋषभदास निगोत्या का जन्म संवत् १८४० के लगभग जयपुर में हुआ था। इनके पिता का नाम शोभाचन्द था। इन्होंने संवत् १८८८ में मूलाचार की हिन्दी भाषा टीका सम्पूर्ण की थी । मन्थ की भाषा ढूंदारी है तथा जिस पर पं० टोडरमलजी की भाषा का प्रभाव है।
____८, कनककीर्चि कनककीर्ति १७ वीं शताब्दी के हिन्दी के विद्वान थे । इन्होंने तत्वार्थसूत्र श्रतसागरी टीका पर! एक विस्तृत हिन्दी गद्य टीका लिखी थी। इसके अतिरिक्त कर्म घटावलि, जिनराजस्तुति, मेघकुमारगीत, श्रीपालस्तुति आदि रचनायें भी अपकी मिल चुकी है । कनककीति हिन्दी के अच्छे विद्वान् थे। इनकी भाषा हूँढारी हैं जिसमें 'है' के स्थान पर है' का अधिक प्रयोग हुआ है । गुटकों में इनके कितने ही पद भी मिले है।
६. कनकसीम कमकसोम १६ वीं शताब्दी के कवि थे । 'जइतपदवेलि' इनकी इतिहास से सम्बन्धित कृति है. जो संवत १६२५ में रची गयी थी। वेलि में उसी संथन में मुनि वाचकदया ने आगरे में जो चातुर्मास किया था उसका वर्णन दिया हुआ है । यह खरतरगाछ की एक अच्छी पट्टाबलि है कषि ने इसमें साधुकीर्ति आदि कितने ही विद्वानों के नामों का उल्लेख किया है । रचना में ४६ पद्य है। भाषा हिन्दी है लेकिन