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नाटक ]
३६५. शब्दानुशासन-वृत्ति --हेमचंद्राचार्य । पारड्या--१५ । साइअ-१०:४६ १७८ । भाषाVikri | विषय-कोष । रचना काल-x 1 लेखन काल --सं. १५२४ । पूर्श । वेटन मं० ४१४ ।
विरोष -- लेख के प्रशस्ति निम्न प्रकार है--
संवत् १५२४ वर्षे श्री स्वरतरगल्ले श्री जिनचन्द्रमूरि विजय लब्धाजसाल गणि, वा. शान्तरत्नगणि शिष्य वा धर्मगगि नाम पुस्तक चिरंथात् ।
३६६. वृत्तरत्नाकर-भट्ट केदार । पत्र संख्या: । साइज-११४४६३४ | भाषा-रामकृत । विषयछद्र शास्त्र । रचना काल- लेखन प.ख-सं. १८६२ पाप सदा ५ | भूभ । वेन न: १६ ।
विशेष – ५ प्रत या गीर हैं जिनमें एक संगकृत टीका सहित है ।
३६७. वृत्तरत्नाकर टीका-सोमचंद्रगरण । पत्र संख्या-४ । साज-१७४ | भाषासंस्कृत ! विषय- शास्त्र । टीका काल -सं० १३.१ । लेखक काल-x1 पूर्ण | बेटन नं० २१६ |
३६८. श्रुतबोध-कालिदास । पत्र संख्या-१ | साज-xxइश्च । भाषा-संत । विषय-हंद शास्त्र । रन ना काल-X । लेखन काल-X1 पूर्ण । श्रेष्टन नं. ४३३ ।
त्रिशेष --- ६ फुट लम्बा एक ही पत्र है । पद्य संख्या ४३ है । इसके बाद रबमाध्याय दिया हुया है जिस के ५६ पश्य है । इसकी प्रतिलिपि मुख राम मोटे ने (संडेलवाल) स्वपठनार्थ सं० १८४५ मंगसिर बुदो ! को कटेश्वर में की थी।
विशेष- एक प्रति और है।
विषय-नाटक ३६६. प्रचोधचन्द्रोदय नाटक-श्रीकृष्ण मिश्र 1 पत्र संख्या-४७ | साइज-१:४६ । गाषासंरकत । विषय-नाटक । रचना काल-x | लेखन काल-० १७८३ फाल्गुन मुदी है । पूर्ण । वैप्टन नं. १ ।