SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुभापित एवं मोति शास्त्र ] अबादति सागाति नगर बीच जै भूप । प्राप बसायौ चाहि करि जैपुर नाम अन्य ॥ सूत बंध सबद्री किंपे हार सुघर बाजार । मिदा कोटि सुकांगरे दरवाने अधिकार ।। सतम्भौ जु बनाइयो, अपने रहनै फाज । बिंब महल बना करी, धाग ताल महाराज । साहूकार वुलाइया लेख भेज बहु स । हासिल बाँध्यौ न्याय जुत लोम अधिक नहि लेस । सुखी भये सरही जहां अधिक चल्ली व्यौपार । सांगावती श्रांवावती उजरी तब निरधार ॥१४॥ आय बस जैपुर विगै कीन्है घर अरू हाटि । निज पुनि के अनुसार ते सुनित भयौ सब साठ ॥१५॥ घोडश संवत्सर मयो सब हो की मुख भात । , सिंह लोकतिर गयौ पिछली सनि अब मात ॥ सब ईसुर मुख भूपती ईसर सिद्ध सु नाम । अति उदार पाबम बदौ सब ही कौ धाराम ।। गायत सबही मुखी इद मूल का ना है । काहू' को दोन्है नहीं चुगलाचार न रहाय ॥ काल दोष ते नाच जन समराखि वछत्रारि । तीन वग्यं के ऊंच जन सिनको मानधराय ।। आप हठी काह सनी मामी नाहीं मात । पिछले मंत्र भकी जिके किया भूप को घात || डिल- दस्त्रिया लियो बुलाय गांद बाहिर रहे । मिल के जहि दिवान दाम देने कहे || लघु भ्राता माधव कु वेगि मिलाय के। लेख भेजियो राज करो तुम श्राय के ।। माधव यागे सित्र धरमी मुखियौ भयो । जैन्यासौं करि द्रोह बैंच में ले लियो । देव धर्म गुरु श्रुत को विनर विगारियो । कीयो नाहि विचारि पाप विस्तारियौ ।।
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy