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[ सुभाषिन एवं नीति शास्त्र इति श्री सद्धि प्रकास भाषा बध जिनसेवक पानसिंह विचित संपूर्ण । कवि अवस्था वर्णन-मरत क्षेत्र में देस ढूढारि । तामै बन उपवागि रसाल ||
नदी बाबडी कुप तडाग । ताकौ देखत उपजै राग ॥ कुकुट हि बैठे लिहि अम । यो समवर्ती तामै गाम ।। धन फन गोधन पूरत लोग । तपसी चौमासे दे जोग ।। ता मधि यंदावति पुरसार । चौगिरदा पत्रित अधिकार ॥ बस्ती तल उपरि साँघनी । ज्यो दाडिम वोजन है वनी ॥ ताकी जैसिंघ नामा भूए । सूरज वंस वि र अनुप । न्यायवंत वुधित विसाल । परजापालक दीन दयाल । दाता सूर तेज जिम मान । ससि अहला दीज्यों जसरवानि ।। हय गय रथ सिवकादि अपार । भ्रत मंत्री प्रोहित परिवार ।। हदि सौ विभौ कुबेर मंडार । बंदु समूह तियाँ बहुवार । पंदत कवि माटादि विसैख । पट दरमन सबही को भेष ।। अपने अपनै धर्म मचखै । कोऊ का नहीं मिले ॥४॥ पणि सिव धर्मी भूपति जान । मंत्री जैनी पुखि अधिकाहि ।। जैनी मिव के धाम उतुंग । सिखर धुजा बुत कलस सुचंग || राग दोष श्रापस मैं नाहि । सवक प्रीति मात्र अधिकाहि ।। सन हो भूपन मैं सिरदार । छत्रपती चलि इन अनुसार ॥ दुतिय पुरी सांगावति जानि । दक्षिण दिसि षट कोस प्रमान ।। पुरी तले सरिता मनुहार । नाम पुरसती सुध अलधार ॥४४ | नगर लोक धनधान अपार । विविध माति करि है व्योहार ॥ ऊचे सिखर कत्लस भुज जहाँ । पन जैन मन्दिर हैं तहाँ ।। धर्म दया सञ्जन गुन सीन । जैनी वहौरा व परवीन ॥ वंस वण्डेलवाल मम गोत । लोल्या बहु परिवारी गीत ॥ यारौ वास हमारौ सही । हेमराज दाद! मम कही ।। पुनि धनुसारि सकल घर मध्य । सामग्री भी सब रिद्धि ।।
दोहा-बडौ मलूक सूचंद छत, दृजौ मोहन राम ।
लूगाकर्ण तीजी कयौ चौथौ साहिब राम ॥ सबके मुत पुत्री धना मोहन राम मुतात । मेरौ जन्म संगावति मांहि भयौ अवदात ।।