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________________ सुभाषित एवं नीति शास्त्र | ९०. भावना पनि मति ! चना काल - X लेखन काल -X | सूर्यो | न न० ११३६ । विशेष – हेमराज ने प्रतिलिपि की थी ६०६. रेखताबज़ीराम पत्र रचनाकाल । लेखन काल -x पूर्ण वैप्टन नं० ११४२ । विशेष—स्फुट रचनाएँ हैं। ६१० सद्भाषितावली भाषा | पत्र संख्या २० | साइज - १२३४४६ इस माषा - हिन्दी | विषय - सुभाषित | रचनाकाल - ४ । लेखन काल -X | पूर्णं । वेष्टन नं ०७०६ । हैोधित है। पथ संख्या २०५ है अंग के मूल कर्ता [भ] [सकोर्त्ति हैं । मात्रा-हिन्दी (पथ) [ २५ पत्र संख्या ३ लाइ १३४ भाषा-हिन्दी (पद्य) विषय विश्यमादित रचना - ६११. सुबुद्धिप्रकाश - थानसिंह पत्र संख्या - १४८१३६३६ ०१४७ कण कुदा ६ जेसन काल-X पूर्ण टन नं० २० । रचना का आदि अन्त में. गनिम्न प्रकार है + - साम्य भाषा - हिन्दी विषय भारत । प्रारम्भ केवल ज्ञानानंद जय पासी पूज्य अरहंत समोरच लक्ष्मी सहित राजे नमूं महंत ॥ २ ॥ कर्म भरि निट कर अष्ट महागुण पाए । सिष्टि भरा नहीं सिद्ध पद बाय ॥२॥ पंचसार आचार मुस्लि गुण छत्तीस निवास । सिसा दिशा देत हैं श्राचारज शिव वास ॥३॥ अन्तिम पाठ - श्रीमति सांति नाथ जी सालि करी निति श्राप | विचन हरी मंगल करो तुम के बाप ॥१०३ सांति मुद्रास्रांति जिस करितीहि । पूवमा सी प्रेम कुसल कर मीहि ॥१०४॥ देस प्रजा भूपति सकल ईत मीत कर दूर सुख संपत्ति धन धान जस किया भाव रख पूर ||३०६ ।। फागुन वदि षष्टी सुगुर ठारासत सैताल पूर अँथमुखांति रोख विषै किय गुनमाल ॥ ६०६ ॥ परियनिसांच करती चरना सार मन किसी तिनकी भी बहार ||६| -
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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