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६५ ]
बोहा
सार
अहिल-----
सोरठा -
भूप अरथ समभयो नहीं मंत्री के वसि होय । दंड सहर मैं नाखियौ दुखी मये सब लोग ||
fafe मोति वन घटि गयौं पायौं बहुत कलेस | दुखी होय पुर को तो तब ताकौ पर देस ॥
मध्यपुर में बाय कछ काल बैठे रहे । पुनि जयपुर में जाय विराज गणि रहयो करें ॥
माधव दरवार विराज कियौं सुख सौ रहे ।
मै इनिचित धारि माधो की जी वारता ॥ ६५ ॥
दुखी रोग धन हीन होय परगति गयी।
सुपुत्र पृथ्वी हर राजा पद भयो ।
इंग्या करि लघु वृतति च लैगयौ । अनुजरात्र परतापसिंघ पी मय ॥
शिवमत जनमत देवधन विप्र तिथि जो कोय । महया कियौ वसि लोग ते भाप पुण्य नहिं जोय | ई अन्याय के जोग तो दुख को हम नोय ।
उदास पुर छाँडियो मुख इन्या उर होय ||
जादौ स विसाल नगर करोरी को मही । नाम सूप गोपाल, क्विज हमारों को सदा ॥ पीछे तुरकमपाल बैक्यों वास करो। राख्यौ मान विमाल, हाट घट उद्यमकियों मानिकपाल नरेस तुझ्समपाल सुपद सर्यो । मंद कषाय महेस, राम दोस मध्य रत है | जाके शत्रु न कोय, सबसौं मिलि राज करें F रेत खुसी छु जोय, भिरता पाते इन करी ॥ पिता र हहि थान, हम जैपुर में ही रहे । लघु भ्राता सत जानि दिन व्योपार कियो घन ॥ नैन ख है नाम, नानिग राम तलुज हैं। बहु स्यानो अभिराम, राजदुबार में प्रगट हैं । गल्यांतर मैं तारा, गयौं जुटीको करण कौ ।
[ सुभाषित एवं नीति शास्त्र