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________________ संबह ] [ १२३ धर्मतरुगीत जिएदत्त (भव तरु साँचै हो मालिया ...... ....." ) हिन्दी ( जय पर सौ कत प्रीति करी रे । पद संग्रह धादिनापजी की भारती मालचन्द लेखन काल १७४६ नोमनाथ मंगल बीस तीकरों की जयमाल विशेष-"पद संग्रह जिग्णदत्त" का नाम "जिणदत्त विकास" मी दिया है। ७२२. गुटका नं. ३३ । पत्र संख्या-४१ ३ साइज-२४३ ६ | भाषा-हिन्दी । लेखन काल-X) पूर्ण । बेष्टन नं. ८ । विषय-सूची कर्ता का नाम भाषा संस्कृत जिनदर्शन संबोध पंचासिका पंच मगल पानतराय रूपचन्द ७२३. गटका नं०३४। पत्र संख्या-७ । पाइज-xt अर्ष बेष्टम नं०१८ १ माषा-संस्कृत । लेखन काख-x। निशेष-नित्य पूजा का संग्रह है। ७२४. गुटका नं. ३५ । पत्र संख्या-२१ । साइन-६४५ मपूर्ण । वेष्टन नं. ६१४ विशेष पूजा पाठ संग्रह है। ५ । भाषा-हिन्दी । लेखन कारी-X । ७२५. गुटका न०३६ | पत्र संख्या-४ | साइज-४४४च । माषा-हिन्दी-संस्कृत । लेखन काल# १७३६ । पूर्ण । वेष्टन नं० ११५ | विशेष-निम्न पाठों का संग्रह हैसंचौध पंचालिका गीतम स्वामी प्रात संस्कृत टीका सहित है। एमाव स्तोत्र नादिराज संस्कृत "
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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