________________
'सिद्धान्त एवं चर्चा
विशेष - संदधि के पलग पत्र है । ११८, १३३ तया २०२ के पत्र नहीं है। ३२. प्रति नं०३-पत्र संख्या-१०३१ । साज-१२x६३ इंच | लेखन काल-X । पूर्ण । वेप्टन
३३. प्रति नं०४-पत्र संख्या-३११ । साज-१३:४८ 1 लेखन काल-x | पूर्ण । वेष्टन • १९
विशेष-केवल कर्म कागड भाषा है। ३४. प्रति नं०५-पत्र संख्या-१२ । साज-१४४६१६च | लेखन काल-४ अपूर्ण । वेष्टन नं०८.१।
विशेष-जीवकारख की माषा मात्र है।
३५. गोमट्टसार कर्मकाएर टीका-सुमति कीनि । पत्र संख्या-४५ | साइज--११x* इस । भाषा66 | विषय-सिद्धान्त । रचना काल-X । लेखन काल-X । पूर्ण । बेष्टन में० २० ।
३६. गोमसार कर्मकाण्ड भाषा-५० हेमराज | पत्र संख्या-४ । साज-1xr । माषा-हिन्दी | विषय-सिद्धान्त । रचना काल-x | लेखन काल-स. १७०६ । पूर्ण । वेष्टन न. ३६६ ।
विशेष -- ६० सेवा ने सरोजपुर में प्रतिलिपि की थी। प्रभ का प्रारम्भ और अन्तिम माग निम्न प्रकार है - प्रारम्भ-पग्णामय सिरस गर्मि शुष स्यण विड्स महावीरें ।
सम्मत्रय निलय पडि समुचित्तणं बोई ॥१॥
अर्थ- अहं नेमिचंद्राचार्यः प्रकृती समुत्कीतने बच्य । अहं है र हौ नेमिचंद्र ऐसे नाम प्राधार्य सो प्रकृतिसमु. कौतन प्रकृति हुकार है समुत्कीलनं कथन जिस विष ऐसा जम कर्मकांड नामा तिसहि वक्ष्ये कहूंगा । किंकृत्वा कहा कार सिरसा नेमिं प्रणम्य सिस्करि श्री नेमिनाथ को नमस्कार कारकै । कैसे है नेमिनाथ गुणरत्न विभूषण-अनत सानादिक र गुण तेई हुवे रत्न तेई है विभूषण प्राभरण जिनके । बहुरि कैसे हैं महावीर महासमद हैं कर्म के नासकरण कौं । बहुरि कैस है सम्यक्त रत्न निलयं । सम्यक्त रूप व है रत्न तिसके निख्य स्थानक है ।
अन्तिम- जिस काल यह जीव पूर्वोक्त प्रत्यनीक धादिक किया विर्षे प्रक्स, तब जैसी कुछ उत्कृष्ट मध्यम जघन्य शुभाशुम किया होई, तिस माफिक कर्म हूँ का बंध कर स्थिति अनुमाग की विशेषता करि । तिस ने समय समय बंध ड करै तौ स्थित अनुमाग को हीनता करि । प्रसव प्रत्यनीक आदिक पूर्वोक्त क्रिया करि करें सुस्थित अनुमाग की विशेषता करि यह सिद्धान्त माखना | स्यं माषा टीका पंडित हेमराजेन कृता स्वबुद्धधानुसारेषा । इति कर्म का भाषा टीका सम्पूर्ण । इति संवत्सरे अस्मिन् विक्रमादित्यराजसप्तदशसत सतषटीचर १७०६ अव सरोजपुरे संनिधे पुस्तक लिख्यतं पंडित सेवा स्वपठनाई
३७. प्रति न० २-47 संख्या-७६ । साइझ-१५xa | लेखन काल-सं. १८२५ श्रासोज दी १०। पूर्ण । यष्टन. ३६६ ।