SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विशेष प्रन्थ लोकसंख्या २०००० प्रमय है । १०० नश्वार्थसार-पत्र संख्पा-४ | सार-११५ मामा-संस्कृत विषय-सिद्धान्त | रचना काल- लेखन काल पूवेशन २०१३। | ०१. त्रिभंगी संग्रह पत्र संख्या ४० स० इ । रचना -- खन सं०] १७२२ आवय इदी ११ पूर्ण वेष्टन नं० १३ । + के गंगाराम ने यह प्रति लिखी थी। द्वेष अन्य में निनिधियों का संग्रह है— बंधनमंत्री उदयउदीरणा मंगी (नेमिन्द्र), राता दिनी भावत्रिमंगी तथा विशेष सत्ता विधा सिद्धान्त एवं चर्चा १०२ त्रिभंगीसार श्रुतमुनि | पत्र संख्या-18 | साइज - ११४५ ६ । भाषा प्राकृत विषयसिद्धान्त | रचनाकाल -X | लेखन काल -X | पूर्ण वेष्टन नं. ३२३ । २०३३व्यसंग्रह - थानेमिचन्द्र पत्र संख्या - ११ साइज १०३ मा वेष्टननं० भाषा प्राकृत वनसिद्धान्त । विषय- सिद्धान्त | रचनाकाल देखन काल ४० १८३३ आदी १५ विशेष – हिन्दी धर्म सहित है। १०४. प्रति नं ०२ पत्र -१३ - १२फा १७३० कार्तिक सी पूर्ण वेष्टन नं० ७६ । विशेष – संस्कृत तथा हिन्दी अर्थ सहित है । १०४. प्रति नं० ३पत्र संख्या २११२६ लेखन का सावनी २१ वेन ०७० | विशेष पर्वत बालबोधन टीका सहित है। बलसीट में महनजी ने प्रतिििष की थी। १०६. प्रति नं० ४ पत्र संख्या साहस लेखन-पूर्व केन में L वेष्टन नं० ८० । विशेष—पद्मनन्दि के शिष्य महारूप ने प्रतिलिपि की । १०. प्रति न० ६ पत्र संख्या १०७. प्रति नं० ५१ संख्या २ साइज-११- पूर्व केदन नं० ७ ॥ I विशेष इसी प्रकार की प्रतियां चोर है। केप्टन २००१ से ८० तक है। ७ साइज १० । लेखन का पूर्व
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy