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________________ अध्यात्म एवं योग शास्त्र ] [ १६५ १३३. प्रति नं०२। पत्र संख्या-११२ । साहज-१.४५४ हश्च । लेखन काल-X । पूर्ण । वन ० २४. विशेष-आनंदराम के वाचनार्थ नित्य विजय ने यह टिपण लिखा था। प्पिया टवा टीका के सरश है। प्रति १३४. समयसारनाटक-बनारसीदास | पत्र संख्या-७३ । साहज-१२४५३ छ । भाषा-हिन्दी । विषय-अध्यात्म । रचना काल- १६६२ । लेखन काल-सं० १०० चैत सुदी १५ | पूर्ण | बेष्टन नं. ३२० । विशेष - बसवा में श्री निरभैराम के वेटा श्री मनसाराम ने फतेराम के पठनाएं लिखी थी । ४ प्रतिया और हैं । १३४. समयसार वनिका-राजमल्ल । पत्र संख्या-१६८ | साइज-1x च । भाषा-हिन्दी जय । विषम-अध्यात्म | रचना काल+x | लेखन काल-x | अपूर्ण । वेष्टन नं. १३ १३६, समाधितंत्र भाषा-पर्वतधर्मार्थी । पत्र संख्या-७७ । साहज-24x५ इंच । माषा-गुजराती देवनागरी लिपि । विषय-योग । रचना काल-x | लेखन काल-० १७५५ फागन नदी । पूर्ण । बेष्टन नं. १३ । विशेष - सागपत्तन में श्री आदिनाथ चैत्यालय में प्रतिलिपि हुई थी । एक प्रति और है। १३७. समाधिमरा भाषा-पत्र संख्या-१३ । साज-१६xe इक । मामा-हिन्दी गध ! विषयअध्यात्म । रचना काल-xलेखन काल-x|वेष्टन नं. १ १३८, सूत्रपाहुड-जयचंद छाबडा । पत्र संख्या-१५ | साइज-१२x६ ह । भाषा-हिन्दी गय विषय-अयात्म । रचना काल- लेसन काल-XI पूर्ण । वेष्टन नं. १२ ।
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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