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[गुढके एवं संग्रह प्रन्थ
(२५) जिनगुनसंपति व्रत कथा (२६) आदित्यनार कथा (20) मेघमाला व्रत कथा (२८) पंच कल्याण बड़ा
(३०) परमानंद स्तोत्र
पृज्यपाद स्वामी
संस्कृत
प्रारम्भ-परमानंद संयुक्त निर्विकारं निरामयं ।
ध्यानहीना न पश्यन्ति निजदेहे व्यवस्थिते ।
(३) वर्धमान स्तोत्र (३२) पानाथ स्तोत्र (३३) आदिनाथ स्तवन
राजसन ब्रह्म जिनदास्त्र
स्वामी श्रादि जिणंद, कर बीनती प्रापणीय । तु ग साचो देव त्रिभुवन स्वामी तू गी ९ ॥२॥ लाख लोगसी योनि पावर जंगम मभ्याए । तुह न लाधो श्रे संसार सागर तेह तन्यो ए | विहंसिर महिपाध्यसमि अांतपणा ।। जामन मरा वियोग. रोग दारिद्र जरा तेह तय ||३|| कांध भान माया लोम रन्दि चोरेहु मोलयोए । ग द्वेष मद मोह-मयण पापी घणु लकीर ।।।। कुदेव गुरु कुशास्त्र मिथ्या मारग रंजियए । साचो देव सुशास्ष सह गुरु वयष नमै दीयुए। || समन कुलभ ने काज कांघो पापभि यति घणाए । ते पातिकनीवार जिनवर स्वामी प्रश्न त ए ||६|| तु माता नु' बाप, तु जाकर तु देव गुरु | तु वाचन जिन राज, बाश्रित फल हरे दान कर .| 11 हे जो तुम्हें झुल देव करम निवारी अन्न तणा। मवि मवि तुझ पाय सत्र गुण अारो स्वामी ब्रह्म घणा ए ॥
सकलकीरति गुरू बदि, जिनवर बिनति जे भगोए | यहा निणदास भणेसार, मुगति वरांगना ने वरे ए ।।।। (३४) च उत्रीस तीर्य कर विनती म तेजपाल (२५ जिनमंगलाष्टक
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संस्कृत
५१५. गुटका २०१३-पत्र संख्या-
साइज-४६:
भाषा-हिन्दी लेखन काल-x |
पूर्ण।
विशेष – नित्य नियम की पूजाऐ हैं । ये पूजा बाल सहेली जयपुर में प्रत्येक शुभवार को होती थी।
लखन काल-सं.
५१६. गुटका नं०१४-पत्र संख्या-११ | साइज-xE: हम । भाषा-संस १६-३ सादवा सुदी १० । पूर्ण ।
विशेष-सुगन्ध दशमी बतोद्यापन का पाठ एवं कथा है। ५१७. गुट का नं. १५ - पत्र संख्यः-१६२ | साइज-६x६६३न । भाषा-हिन्दी । लेखन काल-X । पूर्ण