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गुट के एवं संग्रह प्रन्थ ]
विष-नची ज्ञान तिलक के पक्ष कबीर की परचई
नदी का ना कभीरदास
[ २६७ ले. विशेष हिन्दी सं० १.६ कात्तिक पुदी - -
रेखता कावा पाजी ईसमुक्तावली कबीर धर्मदास की दा यव्य पाठ साखी
कितने ही प्रकार की है
सोसट बंध
विशेष – कवीर दास त रचनाधों का अपूर्व संग्रह है।
फासी बसे कबीर गुसाई एव । हरि भक्तन फ्री पकली टेक ।। बहोत दिना संकिट में गये । प्रत्र हरि को गुन लान भये ॥ ( कवि की परसई)
४.१६. गुटका नं. १६-पत्र संख्या-१३ मे " | साइज-४६३ इम्प । मापा - हिन्दी । लेखन काल- | अपूर्ण ।
विशेष--महाभारत के पांच अध्याय से ३० जे तक है प्रारम्भ के ४ अध्याय नहीं है । जिसके का लालदास है। । में अध्याय से प्रारम्भ --- दरसन भीषम को प्रीय सदा, सकल रीस्वर भागे दिहा ।
सरसध्या भीषम विश्राम, अब मुनि प्रगट रिषिन के नाम ॥ ॥ गृगु वसिय पारास्वर व्यास, चिवन अत्रिय यंगिरा प्रवगाम ।
प्रगस्त नारद पवत नाम, जमदग्नि दुरवाला राम ||२|| २८ व अध्यार का अन्तिम माग - धर्म रूपज राजा सिन भयो, जिहि परकाज अपनपी दी।
विस्नही श्राराधै इहि रीति थरम क्रया में कार माति ॥ १६ || जो बाह कथा सुमै श्रम गाई, धरम सहित धरम गति पायें ।
गौं शौं कथा पुरानन कही, लालादात भाख्यौ यो सही । २० ॥ ५१६. गुटका नं०१७-पत्र संख्या-१०६ । सारज-2x६ | भाषा-हिन्दी । रचन] काल-x | हे.खन कान सं० १८.५ पौष सुदी ७ । पूर्ण ।
विशेष-महाभारत में से 'उषा कथा' है जिसके रचयिता रामदास' है। पारम्भ--श्री गणेसाहनमः । श्री सारदा माताजी नमः । ब्रो नमो भगवत वासदेवाय श्री ऊषा चरण लिखते ।