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________________ [ चरित्र एवं काश्य परम्भ (पय)-श्रीमत वीर जिनेश प६, कमल नमू शिरनाय । जिनवायी उर मैं धरू जजू सुगुरु के पाय ॥ १ ॥ पंच परम गुरु जगत में परम इष्ट पहिचान । भन च तन करि ध्यानते होत कर्म की हानि ॥२॥ अति - सोरम सिथ ली गये, शेष जतो तज प्रान । जानी मवि संक्षेप ईह विध चरित बखान || RH पत्र कमाल चरित्र का सकल ज्ञान या हेत । देश बननिका मव लिपटी मी धरि चित ॥ १६ ॥ अांश प्रमाद कहू भूलि के घरप लिन न ओ होय ।। पंडित जन सब सोधियो, मूल प्रच अवलोय ॥ १२७ ।। अचनिका पध में० ८८ की: थर भूउ नननका बालना ते बुद्धि, को नाश ही है । अपजस फैले है । अर सई जीवन में अविश्वास की 14 हो है । बरि राजादिकनि ते हाथ पाच कान नाक जीम यादि का छेद रूप दे पाई है। निम-श्रादि अंत मंगल करी श्री नृपमादि जिनेश । जैन धर्म जिन भारती, हर संसार कलेश ।। गया . हा देश मध्य अपर नगर वो हैं, गार वर्ग राह चाल अपने मर्ग की। रामसिंह पत के राज मांहि कमी नाहि, की कहु दष्टि परै जानी निज कर्म की ॥ सकल जैनी को पूत्र कस्य पुण्य भको, ____ पायो यह खोलो अब मुदी दृष्टि धर्म की । जैन न कान सुनी घत्मस्वरुप मूनौ, __चा अनुयोग भनी यही संस्त्र मर्म की || २ || कीगई-सी गोत दुलीचंद नाम | ताकीत शिवनंद अभिराम || लाल ताम सुत भयो : जैन धर्म को सालो ल। ।। ३ ॥ बौदाकाणा संभही अमरेश | पाय सहाय पढ्यो शुत लेश || कासलीवाल सदा पुस्य पास | फिर कोनी को अभ्यास ॥ « | श्री कुमाल चरिय रसास । देव कहीं हरचंद गंगवाल || दोन मनिका मय जो ऐह । सम जन वांचे हित गह ॥ ५ ॥
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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