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________________ चरित्र एवं काव्य ] भिन याकरण परे नही शान । मूलभ को हार निदान !! औसी प्रार्थना तने भसाय । मूल मंथ को पाय सहाय ॥ ६ ॥ भावारण सो जिलयो ह । देश वनिका मय धरि नेह ।। नाची पदो पायौं पुनी। यात्म हित के नीक गी ।। || जो प्रभाद बस से कुछ हहा। भोलपनं ते जने कहा || सो सब भूले प्रध अनुसार । पुध करयो बुध जन सुविचार || - !! उनबीससतयार हसार । सात्रय मुदी दशमी गुरुवार ।। पूरा भई वनानि का एह । चाची पटी मुभी धरि नेह || ५ || याहा--गलमय मंगल कान वात राग चिद्रप । मन वन कर सावतें, हो है त्रिभुवन भूप ॥ १० ॥ इति श्री सकलकति याचा विरचित शकुमाल चरित्र संत मय ताकी देशमाए। चरनिका समाप्ता ।। १४. सीताचरित्र-कवि बालक । पत्र संख्या-११३ | साइज-१३४६: इन । भाषा-हिन्दी क्य । बत्रय-चरित्र । रचना काल-सं० १९०३ मन सर सुदी ५ । लेखन काल-सं. १७६ भावन सदी । : । पूर्वी । वेष्टन नं ० ६२ विशेष-५० सुखलाल ने केयू नगर । प्रतिलिपि को भी सुखराम का गीत टालिया, शखापार्टी, वास हिरा गया था । २६५. हनुमतचौपई-ब्रह्मरायमल्ल । पत्र बना-४० । साज-१.४ : भाषा-हिन्दी पच । विषय-रिव ३ रचना काल-सं, १६१६ । लेखन काल-सं० १८६५ ॥ पूर्ण । वेटन ० १: । पदित सवाई रामजी र ) देकर मुम्न विशेष—छोटेलालजी टोया ने मन्दिर दाणावलि ( दीवानी मंवत १०२ में ली थी। . २६६, हनुमच्चरित्र-ब्रह्म अजित 1 पत्र संख्या-| साइज-kxt इन 1 भाषा-स्ति । विषय-चरित्र । रचना काल-४ । लेखन काल-X | पूर्ण : वेष्टन नं ० ५.६६ । विशेष-अथ २० . लोक प्रमाण है प्रति प्राचीन है। २६७. होलिकाचरित्र-निनदास। पत्र संख्या-१०६ । साइज-११,४५ ५ . भाषा-संस्कृत । धक्ष्य-रित्र । रचना कास-४ । लेखन काल-X । पूर्ण । वेष्टन नं० २३ । विशेष-मयश्लोक संख्या ४३ प्रमाण।
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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