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________________ गुट के एवं संग्रह प्रन्थ जानकी जन्म लोला--- श्रादि माग - श्री रघुवर गुर चरन मनाऊ', जानकी जनम पुमंगल गाऊ । काम रहित धर्म जग जोहै, देस विरोहित शन धरि सौहै ।। ता महि मिथुला पुरि सुहाई, मनउ म विधा छवि छाई ।।२।। शान्तिम पाठ-भये प्रगट भक्ति अनंत हित इग दया अमृत रस भरे । सफल मरनर मुनिन फैई है छिनहि सब कारिज सरे ।।३।। मैं देवि दानि सिरोमने करि, दया यह वर दीजिये। सदा अपने चरनदास के दास हम कहूँ कीजिये ||४|| ॥ इति श्री जातुनी जनम लीला स्वामी धारनवन्दजी कृत संपूरन माह सुदी ६ संवत् १७७६ ५६७. गुटका नं०६६-पत्र संख्या-८० | सःज-xk! इज | माषा-हिन्दी । लेखन काल-स. २. ३४ पौष घुर्दा ३ । पूर्ण । विषय- सूची भाषा विशेष फरी का नाम महाराज जसवंतसिंह महाराजा रामसिंह भूषाभूषगा छवितरंग हिन्दी पप सं• २१. पद्य संE प्रारम्भ-अतुर कदन मोहन मदन वदन चंद रघुनंद 1 सिया सहित बसियो सन्नित, जग जय मय श्रानंद ।।।। यहाँ कवि फी शैति प्रधानता रिकै राम जू सौ बिज्य होत है । तात भाव धुनि । अरु प्रयम अनेक चरन अनेक पर फिरत है तातै किति धनुप्रास चंद रघुनेद यह यक । दोहा- श्रानंदित पं.दत जगत सुस्व भिक निव नंद । भाल चंद तुब जपत ही दूरि होत दुख बंद - 11 अन्तिम पाठ-परी परोसनि सौ अटक, घटक चहचही चाह । भरि मादों की चोमि को चंद निहारत नाह ||१३|| कछुक गुन योहान के, वरने और अनूप । असे ही सत्य सर्व प्रौरी लम्नौ अनूप || ४ || इति श्री महाराजा रामसिंहजी विरचिते छवितरंग संप्या । अप्रजाम कवि देव ११३१ গীখি লৰ্যৰ
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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