SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ सिद्धान्त एवं चर्चा १५. ज्ञान क्रिया संवाद-पत्र संख्या-३| साज-.xxइच। मावा-संस्कृत । कनय-चर्चा। रचना काल-X । लेखन काल-सं.१७६ यासोज चुदी १२ । पूणे । वेष्टन नं. ४१५ । विशेष – श्लोक संख्या-१५ हैं। तृतीय पत्र पर धर्मचर्चा भी दी हुई है : १६ तत्वसार दोहा--भट्टारक शुभचंद्र। पत्र संरगा-५ । साइज-११४८१६ । भाषा-गुजरात लिपि देवनागरी । विनय-सिद्धान्त । रचना काल-x | लेखन काल-x ! पूगः | बटन न. ६ । पारम्भ-समय सार र सांभली, रे समरवि श्री समिसार । समय सार सुख सिद्धना, सीमि सुक्न विचारं ॥१॥ थापा प्रप्पि श्रापमुरे प्रापण हेति पाप । आप निमिर' पाषणो ध्यान रहित सन्ताप ।।२।। यार प्राथा प्रोधित सदा रे निश्चय न्याय विया । सत्ता सुख वर वोधमि चेतना धुव प्राण ||३|| क.यार प्राण व्यवहार यी रे दश दौसि एह भेद । दिय वल उरसासनायु तगा बह छेद ||४| अन्तिम - भणी मनीया २ मक्तिमर मारि चेता चिदप । निप्तता निति चेतन चतुर भाव प्रावए । सातु धात देहवेगलो ममल सकल सु विमस्य भावए । अात्म ससप परूवण पटल्यौ पावन संत । भ्याजो ध्यानि ध्येयस्य ध्याता पार मईत १०॥ सात शिव कर : झान निज माघ शुद्ध चिदानंद चीनती मूको माया मोड़ गेह देह । सिद्ध तणा सुखजि मल हरहि घामा मानिशुम ए हए ।। श्री विजय कीर्ति गुरु मनि धरी ध्याउ शुद्ध चित्र ५ । भट्टारक श्री शुभचंद्र मणि पातु शुद्ध सरूप ।।३।। ॥ इति सत्वसार दूहा ।। १५. तत्वार्थरत्नप्रभाकर-भट्टारक प्रभाचंद्र देव । पत्र संख्या - १३८ । साज-१६x 4 | भाषा-संस्कृत । विषय-सिद्धान्त । रचना काल-- | लेखन काल-X । अपूर्ण । वेष्टन नं. १७.। विशेष-- यह तत्वार्थ पूत्र की टीका ई। साल कृत में है। कही हिन्दी भी द होती है। प्रणा
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy