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गुट के गवं संग्रह प्रन्थ ]
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{ ४ । पुनीश्वरों की जयमाल (५ ) योगसार
जिगादास योगचन्द्र
गा: में ही कर दिया है।
(*) प्यास मवैया
रूपचंद प्रारम्भ-अनभी अभ्यास मैं भिवास सुध चेतन को ।
प्रनभौ सरुप सुध बोध को प्रकास है । पनी अनूप उप रत अनंत ग्यान । अनमो धनीत त्याग म्यान सुखरास है ।। श्रनभी अपार सार श्राप ही की आप जाने । पाप ही मैं व्याप्त दीस जाम जद नास है ।। अनुभौ सरुप है मरूप निदानन्द चंद ।
अनुभौ अतीत बाट कम स्यौ बकास है ।। पन्तिम पाठ-चौथे सरवांग सुधि भानै सौ मिथ्याती जीव,
स्यादवाद स्वाद बिना भूलौं मूढ मती है । चौंथ अति इन्द्री ग्यान जाने नहीं सो अजान, वह जगत्रासी जीव महा मोह रती है। चौथे पस्यो गौ मान वह मैं को भेद जाने, झानैं यो निदान कीयौ साचौ सील सता है। चार चाल्यो धारा दोइ म्यान भेद जाने सोइ, तर प्रगट चौंदे गयो सिंध गती हैं ।
इति श्री अध्यात्म रूपचंद रेत कवित समाप्त । ममा ग्रन्थ ४०१
६२६. गुटका नं. १२८--संग्या-१३० । सारज-६x६ इभ | भाषा-हिन्दी । लेखनकाल-- | अपूर्ण । विशेष प्रारम्भ के २१ पत्र नहीं हैं ।
काल चरित्र
कवीर
हिन्दी
साखी
अपूर्ण २३ पध है
अन्तिम पन्ध --ऐसे राम कहे सब काई, इन बातीन ती भगतिन म होई।
कहै कबीर सुनह गुर देवा, दूजी जाने नाही भेवा ॥
आरची, कबीर धनी धर्मदास की माला, सबब, रमानी, रेक्सा तथा अन्य पदों व पाठों का संग्रह हैं।