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________________ [ गुटके एवं संग्रह प्रन्य गुटका अधिक प्राचीन नहीं है। ६३. गुटका नं० १२६ --पत्र संख्या-२ से ८ | साज-=x५६ | भाषा-संस्कृत | लेखन काल-४ । अपूर्ण । विशेष-संस्कृत में अभिषेक पाठ है। ६३१. गुटका नं० १३०-पत्र संख्या-१ । साज-६x४६ इन्छ । भाषा-संस्कृत । लेखन काल-x} अपूर्ण। विशेष-पूजाथों का संग्रह हैं। ६३२. गुटका नं० १३१- पत्र संख्या-२२५ । साइज-x६ इभ । भाषा-हिन्दी-संस्कृत | लेखन कालसं.१७७६ मंगसिर दी ३१ पूर्ण। विशेष कर्ता का नाम बनारसीदास भाषा हिन्दी मनरम श्रजयराज विषय-सूची मोन पैडी विनती विनती अठारह नाता का चौटाल्या श्रीपाल स्तुति साधु बंदना आदित्यवार कथा लोहट दो प्रति हैं। २१ पत्र हैं। बनारसीदास भाऊ कवि १४. पथ है। काः सं. १६ फागुण सुदी ३ । ४० पद्य है। गुणातरमाला मनराम प्रारम्भ-मन बच कर या जोडि कैरे ब्रदौ सारद मायरे । गुण अनिर माला क मणौ चतर सुख पाई रे । माई नर भन पायौ मिनख को HE परम पुरिष मणमो प्रथम रे, श्री गुर गुन श्राराधी रे, ग्यान ध्यान मारिगि लहै, होई सिधि सब साधो रे । भाई नर भव पायौ मिनख को ॥२॥ अन्तिम भाग-हा हा हासो जिन करें रे, करि कार हासी पानौ रे । हीरौ जनम निवास्यिो, विना भजन मगवानौ रे ||३|| पदै गुण पर सरदह रे, मन वच काय जो पीहारे । नीति गहै अति सुम्न लहै, दुख न च्या ताही रे । माई नर भन्न पायौँ मिनस्ल कौ ॥३८॥
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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