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[ कथा एवं रासा साहित्य अन्तिम पाठ-पाठक पद संयुक्त पता चेयं कमानिका ।
श्रीमद् गौतमपच्छा सत्रमामुखबोधका 1| लिखतं चेता हमर विजयः।
इति गोतमपृच्छा संपूर्णः। ५४५. चन्दनष्टिवतकथा-विजयकीर्ति । पत्र संख्या-६ । साइज-११३४३ इश्च । माषासंत | विषय-कथा । रचना काल-४ । लेखन काल-सं० १६६० | पूर्ण । वेष्टन न. ५०१ 1
विशेष-ईश्वरलाल चादवटि ने प्रतिलिपि कराई भी ।
५४६. चन्द्रहंसकपा-टोकम । पत्र संख्या-४४ । साइज-११३४४ इन्च । भाषा-हिन्दी । विषय-- कमा | रचना काल-सं. १७०८ । लेखन काल-सं० १८१२ । पूर्ण । बेष्टन नं. ५.७६ ।
विशेष-रचना के पथों की संख्श ४५० है । रचना का प्रारम्भ और अन्तिम पाठ निम्न प्रकार हैं। पारम्भ-धोकार अपार गुग्य, सव ही घधार प्रादि ।
सिद्ध होय ताको जव्या, आखिर एह अनादि । जिन वाणी मुल उचरे, ओं सबद सरूप ।
पंडित होय मति वौसरो, आखिर एह अनुप ||२|| अन्तिम पाठ-सांभरि स्यौ दश कोसा गांव, पूर्व दिशा कालख है ठाम ॥ ४ ॥
ता माहै व्यापारी रहै, धम्म कर्म सो नीति की कहै । देव जिनालय है तिहाँ मलो, आवग तिहां कमा साभली ॥४४१॥ विधि सौ पूजा करें जिन तनी, मन में प्रीति मु राखें घणी । झगडू तहानग्यौ हुजदार, बस लुहाया में सिरदार ||४४ ९।। भोज राज साहिब को नाव, ई मलाई सौप्यों गांव । सब सौ प्रति चलावै साह, दोष न करें कदै मन माहि ॥४४३॥ पुत्र दोन ताकै घरि मला इजाणि, पिता हुकम करें परवान | कालु और नराईनदास, हगातणीय जीव पास ॥४४४|| माई बंधु कटक परिवार, निधि सौ करै सबन को सार । साहमी तयौ बिनौ पति करें,सति वचन मुस्ख उचरै ।।४४५।। जिती भलाई हैं तिहि माहि, एक जीम वरणन नहो जाई । सब ही को दिल लीया हापि, जिमैं बैंठि आपने सायि || ४४६ भैसी गति बैंचियो भार, जायण ताकौ सब संसार ।। संवत पाठ सतरा वर्ष, करता चौपई हुवो इर्ष ।। ४.४७ ॥
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