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________________ धर्म एवं श्राचार शास्त्र [२७ बहु विधि रचना स्ची तह माहि । शोमा वानत पार न पाहि ॥१२॥ ताके दर्शन कर मुस्स राशि । प्रापत भई रंक निधि भासि || कारन एक मयो विहि ठाम । रहने को भानु तप्त नाम |॥१२॥ मंत्री जगतसिंह को नाम । अमरचन्द्र नामा गुणधाम ।। रहै बहुत सजन सुखदाय । धर्म राग शोभित पधिकाय ॥१३॥ मोत अधिक प्रीति मन धरै । विनि अटकागो मैं हित खरे ॥ ता कारण चिरता तिहि पाय । सुगनचंद्र के कहै भाय ॥१४॥ चारित्रसार प्रम की भाष ! बचन रूप यह कार ससाख । ठाकुरदास और इन्दराज | छान भाइन के बुद्धि समाज ॥१५॥ मंदबुद्धि श्रर्थ विशेष । तहि प्रतिमायो होय अशेष ।। सुधी ताहि नोकै ठानियो । पछिपात मत ना मानियो ॥१६॥ अनेकत यह जैन सिवंत । नय समुद्र बर कहि विलसत ।। गुरुवच पोत पार मत्रि जीव । लहो पार मुख करत सदीन ।।१७|| जयवंती यह होइ दिनेश । चन्द नखत उह बजावत शेष ॥ पढो पदावो भव्य संसार |बटी धर्म जिनवर सुखकार ॥१८॥ संबत एक सात अठ एक । माघ मास सित पंचमि नेक ॥ मंगल दिन यह पूरण करी। मांदो विरधो मुख गण भरी ॥१॥ दोहा:-मुभ चिंतक ह लेख का दयाचंद यह जानि । लिख्यो मम तिनि नै पो बाचो पटो मुझसानि । विशेष-ग्रप की एक प्रति और है लेकिन अपूर्ण है। १६३. चिद्विलास-दीपचन्द-पत्र संख्या-५ | साइज-१२३४व । भाषा-हिन्दी । विषय-धर्म । बमा काल- सं. १७७६ फाल्गुण बुद्धी ५ । लेखन काल-० १७८४ वैशाख धुदी १२ । पूर्ण । वेष्टन में ७३६ । १६४. चौरासी बोल-हेमराज । पत्र संख्या-१४ | सारज-११६x४ास । माषा-हि-दी । ५-धर्म । रचना काल-X| लेखन काल-x । पूर्ण । वेष्टम में० ८७१। १६५. चौवीस दंडक-पत्र संख्या-२८ 1 साज-uxt । भाषा-हिन्दी । विषग-धर्म । रचना काल सं० १८५४ प्रावण सूदी । । सेवन काल-x पूर्ण वेष्ठन नं. १४७ । विशेष-~१४ वें पत्र के आगे बारह भावना तथा बाईस परीषह का वर्णन है । दंडक में ११८ पथ हैं। .
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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