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________________ का परमात्मप्रकाश सटीक, हेमचन्द्राचार्य का शब्दानुशासनवृत्ति एवं पुष्पदन का आदिपुराण आदि रचनाओं की भी प्राचीन प्रतियां उल्लेखनीय हैं । यहाँ पर पूजापाठ संग्रह का एक गुटका है जिसमें ४७ पूजाओं का संग्रह है । गुदका प्राचीन है । प्रत्येक पूजा का मण्डल चित्र दिया हुआ है। जो रंगीन एवं सुन्दर है। इस सचित्र प्रन्थ के अतिरिक्त वेष्टनों के २ पुढे ऐसे मिले हैं जिनमें से एक पर तो २४ तीर्थकरों के चित्र अंकित हैं तथा दूसरे पट्टे पर केवल बेल बूटे हैं । - भण्डार में संग्रहीत गुटके बहुत महत्त्व के हैं । हिन्दी की अधिकांश सामग्री इन्हीं गुटकों में प्राप्त हुई है । भ. शुभचन्द्र, मेघराज, रघुनाथ, ब्रह्म जिनदास आदि कवियों की कितनी ही नवीन रचनायें प्राप्त हुई हैं जिनको हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त होगा। इनके अतिरिक्त भण्डार में २ रासो मिते है जो ऐतिहासिक है तथा दिगम्बर भण्डारों में उपलब्ध होने वाले ऐसे साहित्य में सर्वप्रथम संसों हैं। इनमें एक पर्वत पाटणी का रासो है जो १६ वीं शताब्दी में होने वाले पर्वन पाटणी के जीवन पर प्रकाश डालता है । दूसरा कृष्णदास बघेरवाल का रासो है जो कृष्णदास के जीवन पर तथा उनके द्वारा किये गये चान्दखेडी में प्रतिष्ठा महोत्सव पर विस्तृत प्रकाश डालता है। इसी प्रकार संवत् १७३३ में लिखित एक भट्टारक पट्टावलि भी प्राप्त हुई है जो हिन्दी में इस प्रकार की प्रथम पट्टावलि है तथा भट्टारक परम्परा पर प्रकाश डालती है। भण्डारों में उपलब्ध नवीन साहित्य जैसा कि पहिले कहा जा चुका है दोनों शास्त्र भण्डार ही हिन्दी रचनाओं के संग्रह के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है । १४ वी शताब्दी से लेकर २० वीं शताब्दी तक जैन एवं जैनेतर विद्वानों द्वारा निर्मित हिन्दी साहित्य का यहां अच्छा संग्रह है । हिन्दी साहित्य की नवीन कृतियों में कवि सुधारु का पंच म्न चरित, (सं० १४११) कवि चीर कृत मणिहार गीत, आज्ञासुन्दर की विद्याविलास चौपई (१५९६), मुनि कनकामर की ग्यारहप्रतिमावर्णन, पद्मनाभ कृत इंगर की बावनी (१५४३), विनयसमुद्र कृत विक्रमप्रबन्ध रास (१५७३) छीहल का उदर गीत एवं पद, शाम जिनदास का आदिनाथस्तवन, व कामराज कृत सठ शलाकापुरुषवर्णन, कनकसोम की जइतपदबेलि (१६२५), कुमदचन्द्र एवं पूनो की पद एवं विनलियां आदि उल्लेखनीय हैं । ये १४ वों से लेकर १६ वीं शताब्दी के कुछ कवि हैं जिनकी रचनायें दोनों भण्डारों में प्राप्त हुई हैं । इसी प्रकार १४ वीं शताब्दी से १६ वीं शताब्दी के कवियों की रचनाओं में ब. गुलाल की विवेक चौपई, उपाध्याय जयसागर की जिनकुशलसूरि स्तुति, जिनरंगसूरि की प्रबोधवावनी एवं प्रस्ताविक दोहा, प्र. ज्ञानसागर का व्रतकथाकोश, टोउर कवि के पद, पद्मराज का राजुल का बारहमासा एवं पार्श्वनाथस्तवन, नन्द की यशोधर चौपई (१६५८), पोपटशाह कृत मदनमंजरी कथा प्रबन्ध, बनारसीदास कृत मांझा, मनोहर कवि की चिन्तामणि मनबाबनी, लघु बावनी एवं सुगुरुमीत्र, मझकवि कुन प्रबोधचन्द्रोदयनाटक मुनि मेघराज कृत संयम प्रवहणगीत (१६६८, रूपचन्द का अायात्म स्वैय्या, भ. शुभचन्द्र कृत तत्त्वसार
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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