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१५ घों शादी से लेकर १६ वो शताब्दी तक की प्रतियों का अच्छा संग्रह है। ये प्रतियां सम्पादन कार्य में काफी सहायक सिद्ध हो सकती हैं । हेमराज कृत प्रवचनसार भाषा एवं गोमट्टसार कर्मकाण्ड भाषा, बनारसीदास का समयसार नाटक, भ० शुभचन्द्र का चारित्रशुद्धि विधान, पं० लावू का जिणदत्तचरित्र, पं. टोडरमलजी द्वारा रचित गोमट्टसार भाषर, आदि कितने ही प्रन्थों की तो ऐसी प्रतियां हैं जो अपने अस्तित्व के कुछ वर्षों पश्चात् की ही लिखी हुई हैं। इनके अतिरिक्त कुल्ल ग्रन्थों की ऐसी प्रतियां भी हैं जो प्रन्थ निर्माण के काफी समय के पश्चात् लिखी होने पर भी महत्त्वपूर्ण हैं । ऐसी प्रतियों में स्वयम्भू का हरिवंशपुराण, प्रभाचन्द्र की प्रात्मानुशासन टीका, महाकवि वीर कृत करन्यू र वामीचरित्र, कवि संधारू का प्रद्युम्नचरित, नन्द का यशोधर चरित्र, मल्लकवि कृत प्रबोधचन्द्रोदय नाटक, सुखदेव कृत वणिकप्रिया, वंशीधर की दस्तूरमालिका, पूज्यपाद कृत सर्वार्थसिद्धि आदि उल्लेखनीय है ।
भण्डार में सबसे प्राचीन प्रति वड्माणकाव्य की वृत्ति की है जो संवन १४८१ की लिखी हुई है। यह प्रति अपूर्ण है । तथा सबसे नवीन प्रति सवत् १९८७ की अढाई द्वीप पूजा की है । इस प्रकार मत ५०० वर्षों में लिखा हुआ साहित्य का यहाँ उत्तम संग्रह है। भण्डार में मुख्य रूप में आमेर एवं सांगानेर इन दो नगरों से आये हुये ग्रन्थ है जो अपने २ समय में जैनों के केन्द्र थे । ठोलियों के दि. जैन मन्दिर का शास्त्र भण्डार
टोलियों के मन्दिर का शास्त्र भण्डार भी ठोलियों के दि जैन मन्दिर में स्थित है। यह मन्दिर भी जयपुर के सुन्दर एवं विशाल मन्दिरों में से एक है । मन्दिर में विराजमान चिल्लोरी पापण की सुन्दर गृत्तियां दर्शनार्थियों के लिये विशेष आकर्षण की वस्तु है | जयपुर के किसी ठालिया परिवार द्वारा निर्मित होने के कारण यह मन्दिर ठोलियों के मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है । मन्दिर पञ्चायती मन्दिर तो नहीं है किन्तु नगर के प्रमुख मन्दिरों में से एक है । यहाँ का शास्त्र भएडार एक नबीन एवं भव्य कमरे में विराजमान है । शास्त्र भण्डार के सभी ग्रन्थ वेष्टनों में बंधे हुये हैं एवं पूर्ण व्यवस्था के साथ रखे हुये हैं जिससे अावश्यकता पड़ने पर उन्हें सरलता से निकाला जा सकता है । पहिले गुटके की कोई व्यवस्था नहीं थी तथा न उनकी सूची ही बनी हुई थी किन्तु अब उनको भी व्यवस्थित रूप से रस्त्र दिया गया है।
ग्रन्थ भण्डार में ५१५ ग्रन्थ तथा १४३ गुटके हैं । यहाँ पर प्राचीन एवं नवीन दोनों ही प्रकार की प्रतियों का संग्रह है जिससे पता चलता है कि भण्डार के व्यवस्थापकों का ध्यान सदैव ही हस्तलिखित ग्रन्थों के संग्रह की ओर रहा है । इस भण्डार में ऐसा अच्छा संग्रह मिल जायेगा ऐसी आशा सूची बनाने के प्रारम्भ में नहीं थी । किन्तु वास्तव में देखा जावे तो संग्रह अधिक न होने पर भी महत्वपूर्ण है और भाषा साहित्य के इतिहास की कितनी ही कडियां जोडने वाला है । यहाँ पर मुख्यतः संस्कृत और हिन्दी इन दो भाषाओं के ग्रन्थों का ही अधिक संग्रह है । भण्डार में सबसे प्राचीन प्रति ब्रह्मदेव कृत द्रव्यसंग्रह टीका की है जो संवत् १५१६ ( सन १३५६ ) की लिम्बी हुई है। इसके अतिरिक्त ये गीन्द्रदेव