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________________ [ सिद्धान्त एवं चर्या ता कारण देवचंद कीनी माय। प्रभ । मणसी गुणासो जे मदिक लसी ते सिव पंथ ॥१३॥ श्यक शुद्ध श्रोता रूची मिल यो ५ संयोग । तत्वज्ञान श्रद्धा सहित बल काया नीरोग ||१४|| परमागम 'राचज्यो लहस्यो परमानंद । धर्म राग गुरु श्रम सुधरि उओं एख वृन्द ॥१५॥ अंध फिया मनरंग ससित पख फागुण्ठ मास | भौमवार श्रम तीज तिथि सफल फली मन श्रास !|१६|| तथीभागमसार प्रसंपूणे । स. १७१६ वर्षे मार्गसीय बुदी १२ भृगुवासर धमनगरमध्ये रावत सोहि पाध्ये लिपिक मट प्रदेगा पाना । मई गागा भी । २. आवधिभंगी........"। पत्र संख्या-११० । साइ-१२४५ इञ्च । भाषा-हिन्दी। विषयसिद्धान्त । रचना काल-X । लेखन काल-X | पूर्णं । वेटन नं. ३२२ । विशेष-पत्र २० तक सत्ता त्रिभंगी तथा इससे आगे भाव विभंगी है। गुणस्थान तथा मागण। का धान है। ३. कर्मप्रकृति-नेमिचन्द्राचार्य । पत्र संख्या-२१ । साहज-११४४३५ । मात्रा-मारत । विषय-सिद्धान्त । रचना काल-X । लेखन काल - | पूर्ण । धन मं. १६७ । वशेष-दो प्रतियां और हैं ४. कर्मप्रकृति वृति-सुमसिकीत्ति । पत्र संख्या-४६ । साइज-१६x६ इन। माषा-संस्कृत । विषय-सिद्धान्त । रचना काल-X । लेखन काल-सं० १८५५ वैसाख बुदी । । पूर्गा । वेष्टन न० ३७८ | विशेष-जयपुर में शान्तिनाथ चैत्यालय में पं० श्रानन्दराम के शिष्य श्री चंद्र ने प्रतिलिपि की । ५. गुणस्थान चर्चा--पत्र संख्या-११० । साज-१२४६ च । भाषा-संस्कृत । विषय-सिद्धान्त । रचना काल-x 1 लेखन काल-सं० १७६० | पुरा । बटन नं. १३ । विशेष-गोमट्टसार के अधार से हैं। ६. गुणस्थान चर्चा .........."f पत्र संख्या-४ । साइज-१२३४६ इन्च | भाषा-संस्कृत । विषयसिद्वान्त । रचना काल- xलेखन काल-x। पूर्ण | बेष्टन नं० ३१४१ विशेष-गोमसार के आधार से वर्णन है ।
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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