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________________ सिद्धान्त एवं चर्चा ] [ २१ श्री प्राचन्द्रदेवाः सत्शिष्य वसुन्धराचार्य श्री धर्मचन्द्रदेवाः तदान्नाये खंडेलवालान्वये शेरपुर वास्तव्ये पाटणी गोत्रे साह श्रबणा तहमा तेजी तयोः पुत्रौ द्वी प्र० संधी चापा द्वितीय संधी दुल्हा | संधी भाषा तद्भार्या श्रृगारदे तयोः पुत्रान चत्वारः । a प्रथम साह ऊथा द्वितीय साह दीपा तृतीय साह नेमा चतुर्थ साह मलू । साह ऊधा भार्या अधसिरि तत् पुत्र साह पर्वतमा पोसिरी । स दीपा मार्या देवलदे । साह नेमा भार्या लाडमदे तयोः पुत्र चि० लाला | साह मल्लू भार्या महमादे | साह दूलह भार्या बुधी तो पुत्रास्त्रयः प्रथम संघी नानू द्वितीय संधी टक्करसी तृतीय संघमुदत | संघी नानू माय नामक तो पुत्र चि० कोजू । संघी टक्कर भार्या पारमदे तयोः पुत्र प्रसाद ईसर त मार्यो अहंकार, द्वि० चि० सेवा | साइ गुणदत्त माथी भारवदे । तयो पुत्रास्त्रयः प्रथम चिद रोगराज द्वि० चि० सुमतिदास तृ० वि० धर्मदास एतेषां मध्ये साह भलू इदं शास्त्रं लिखाय पंचमीत्रतोद्योतनाथं श्राचार्य श्री ललितकीर्ति श्राचार्य धनक राय | १३४. भावसंग्रह - श्रुतमुनि । पत्र संख्या - १ से १४ । साहब - ११६४५६ | भाषा - प्राकृत । विषय— सिद्धान्त । रचना काल -x 1 लेखन काल- सं० १५१० । पूर्णे । देष्टन नं० ११० १ वशेष — कही २ संस्कृत में टीका भी है। लेखक प्रशस्ति निम्न प्रकार है संवत् १५१० वर्षे श्राबाद मुदि ६ शुक्ले गुरुजश्देशे ऋपहली शुभस्थाने श्री श्रादिनापचैः पालये श्रीमत् श्रष्ठाचे नन्दीतरगच्छे विद्यागणे सट्टारक श्रीराम सेनान्यये भट्टारक श्री यश कीर्तिः तत्पड़ भट्टारक श्री उदयसेन, श्राचार्य श्री जिनसेन पठनार्थ | १३६. लब्बिसार - ० नेमिचन्द्र । पत्र संख्या - १६ | साइज - १२३४४ विषय- सिद्धान्त । रचना काल -X | लेखन काल - सं० १५५१ श्राषाट सुदी १४ । पूर्ण वेष्टन नं० १०४ | विशेष—संस्कृत टीका सहित हैं । लेखक - प्रशस्ति निम्न प्रकार है । | भाषा - प्राकृत | संवत् १५५१ वर्षे आषाढ सुदी १४ मंगलवासरे ज्येष्ठानात्रे श्री मेवाटे श्रीपुरनगरे श्री ब्रह्मचालुक श्रीराजाधिराज रायश्री सूर्य सेन राज्यप्रवर्तमाने श्री मूलसंधे बलात्कारमये सरस्वतीगच्छे, श्री नंदिसंचे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये म० श्री पद्यनंदिदेवाः तत्पङ्ग श्री शुमचन्द देशः पट्टे श्री जिनचन्द्र देवाः तत् शिष्य मुनि स्वकीर्तिः तत् शिष्य मुनि लक्ष्मीचन्द्रः खंडेलवालन्वये श्री साह गोत्रे साह काल्हा मार्या रामादेतत् पुत्र साड़ बीका, साह माधव, साह लाला, साह दूँगा | श्रीझा भाग विजयश्री द्वितीय मार्यो पूना । विजय श्री मार्या पुत्र जिणदास भार्या जौणदे, तत् पुत्र साह गंगा, साह सांगा साद सहसा साइनो 1 सहसा पुत्र पासा साम्रमिदं लन्धिसारभिधानं निजलानावरणी कर्म क्षयार्थ मुनि लक्ष्मीचन्द्राय पठनार्थ लिखापितं । लिखितं गोगा नाम गोड शातीय जयंत्यन्त्रहमर्हतः सिद्धाः सून्युपदेशकाः । साधवो मध्यलोकल्प शस्योत्तम मंगलं ॥ श्री नागार्य तनूजतिशांतिनाथोपरोधतः । वृत्तिर्मध्यप्रबोधाय सन्धिसारस्य कथ्यते ॥
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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