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{ सिद्धान्त एवं पर्धा
मंगलाचरणा
बंद जिन जित कम प्रति १८८, वाक्य विशद त्रिभुवन हित मिष्ट । अंतर हित धारक गृन वृन्द, ताके पद दत्त सत इंद ॥
प्रतिमा
पराकात कुन्दकुन्द बखानी, ताका रहिस अमृतचन्द्र जानि । टोका रची सहस कृत वानी, हेमराज बचानिका पानी ॥ ५७७ ॥ करें मम्यक्त्व मिपाव हरे,' भन्न सागर खौल तै तरै। महिमा मुम्न से कही न जाय, बुधजन बंदै मन बच काय ॥५७८ ॥ सोगही अमर चन्द दीवान, मोफू कही त्यावर पान । मुनालाल फुनि नेमिचन्द सहसकिरत न्यायक गुन वृन्द || शब्द अर्थ धन यो में लयो, भाषा कान त उमगधो ||५८०॥ भक्ति प्रेरित रचना यानी, लिखो पटी नाचौ भवि शानी । औ बहु यामै अनुध निहारी, मूखमय लखि ताहि सुधारो। रामसिंह सूप जयपुर मसै सदि छासोज गुरु दिन दशै ।
उगणो से में घटि हैं बाट ता दिवस में रचयो पाठ ॥५८२॥ १३३. भाव संग्रह-देवसेन । पत्र संख्या-५ से ३४ । साइज-११४५ छ । माषा-प्राकृत । विषयसिद्धान्त । रचना काल-। लेखन काल-सं० १६३१ फाल्गुण बुदी ४ । पूणे । रेष्टन नं. १११ ।
लेखक प्रशस्ति निम्न प्रकार है
विशेष - अथ श्री संवत् १६२१ वर्षे फाल्गुण बुदी भौमवासरे । श्रम श्री काष्ठा घे माथुरा यये पुष्करग जिनाये यमोत्कान्वये गौरल गोत्रे पंचमीवत उद्धरण वीर साह जगरु तस्य भार्या देल्हाही तस्य पुत्र सा. धुजीला तस्य मायर्या बाल्हाही फतेहाबाद बास्तव्यं । तयों पुत्रा पर प्रथम पुत्र..........।
१३४. प्रति न०२--पत्र संख्या-६१ । साइज-११४ ५ ६ । लेखन काल-इ० १६.१ भोगसिर सुदी १०। पूम्य : वेष्टन नं. ११२ ।
विशेष-शेरपुर निवासीपाटनी गोत्र काले साह मल ने यह शास्त्र लिखा था।
प्रशस्ति निम्न प्रकार है
संमत् १६०६ मार्गसरी १० शुक्ले रेवती नक्षत्रे श्री मुद्धसंघे नंयामाये बलात्कारगणे सरस्वतीगरी श्री कुन्दकन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्री पद्मनन्दि देवाः तत्प? म. श्री शुभचन्द्र देशाः सत्य? भ. श्री जिणचन्द्र देवाः जल्पट्ट भ.