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सिद्धान्त एवं चर्चा
१२५. द्रव्यसंग्रह भाषा-पत्र संख्या-- * । साइज-६x६ | भाषा-हिन्दी ! विषय-सिद्धान्त । रचना काल-४ । लेखन काल-४ । पूर्व । वेष्टन नं. ८४१ 1
विशेष-पहिले द्रव्य संग्रह की गाथायें दी हुई हैं और उसके पश्चात् गामा के प्रत्येक पद का अर्थ दिया हुआ है।
१२६. द्रव्य का ब्योरा-पत्र संख्या-१८ । साज-४४६१ दछ | भाषा-हिन्दी । विषय-सिद्धांत । रचना काल-X । लेखन काल । । . .
१२७ पंचास्तिकाय-पा० फुन्दकुन्द । पत्र संख्या-३३ । साइज-११४५ इव । भाषा-प्राक्त । विषय-सिद्धान्त । रचना काल-X । लेखन काल-सं०. १८०५ । पूर्व । बेष्टन नं. ११६ ।
विशेष-मूल मात्र है।
१२८. पंचास्तिकाय टीका--अमृतचन्द्राचार्य । पत्र संख्या-४३ । साइन-५२४३ प । भाषासंस्कृत । विषय-द्धिान्त र रचना काल-XI खेखन काल-सं० १८७२ फाल्गुण बुदी । पूर्ण । वेष्टव नं. ११४ ।
१२६. प्रति नं.२-पत्र संख्या - 2 | साइज-१२४५ च । लेखन काल-सं० १८२५ भाषाट बुदी ७ । पुन । वेष्टन नं. ११५ ।
विशेष-सबलसिंह की पुत्री पाई रूपा ने जयपुर में प्रतिलिपि फाई की।
१३०. पंचास्तिकाम प्रदीप-प्रभाचन्द्र । पत्र संख्या- १२ । सा--१३४६ इंच | भाषा-संस्कृत । विषय-सिद्धान्त । रचना कास-X1 लेखन काल-X । अपूर्ण । वेष्टन ने 30 ।
विशेष-या कुन्दकुन्द कृत पञ्चास्तिकाय को रीका है । अन्तिम पाठ इस प्रकार है-- इति प्रमाचन्द्र बिरचिते पंचास्तिक प्रदीपे मूलपदार्थ प्ररूपाणाधिकार समासः ॥
१३१. पंचास्तिकाय भाषा-पं० हेमराज ! पत्र संख्या-१०४ | साइज-११x६ । भाषा-हिन्दी । विषय-सिद्धान्त । एवना काल-x ! लेखन काल-सं० १७२१ श्राबाट बुदी = | थपूर्ण । वेष्टन ने० ३२१ ।
विशेष-श्रामेर में शाह रिषभदास ने प्रतिलिपि कराई थी । प्रति प्राचीन है । हेमराज ने पञ्चास्तिकाय का हिन्दी गध में घर्थ लिखकर जैन सिद्धान्त के अपूर्व प्रन्म का पऊन पाठन का अत्यधिक प्रचार किया था। हेमराज ने रूपचन्द्र के प्रसार से अब रचना की थी।
१३२. पंचारितकाय भाषा-बुधजन ! पत्र संख्या-६५ । साइन-२१४५ इश्च । भाषा-हिन्दी ( पद्य ) । त्रिस्य-सिद्धान्त । रचना काल-सं० १८२ | लेखन काल-X । पूर्ण । बेष्टन नं. ३७५ ।
विशेष-संघी अमरचन्द दीवान की प्रेरणा से मन्ध रचना की गयी थी। 4 में ५८२ पप है। रचना का आदि अन्त निम्न प्रकार है