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{ सिद्धान्त एवं चर्चा ११८. प्रति नं०२-पत्र संख्या-३५ । साइज-११६४५ च । लेखन काल-० १ १३ पौष बुधो १० । पूर्ण । वेष्टन नं०७४३।
विशेष-संग्रामपुर नगर में प्रतिलिपि हुई।
११६. प्रति २०६-पत्र संख्या-३१ । साहब-१२४६ इज । लेखन काल-- | सूर्य । वेष्टन नं. ७४४ ।'
विशेष प्रतियौं वर्षा में भीगी हुई हैं।
१२०. प्रति नं. ४-पत्र संरव्या-४= ! साइज-१२४५३ च । लेखन काल-- । पूर्ण । वेष्टन नं ७४५ ।
१२१. द्रव्यसंग्रह भाषा-जयचन्दजी । पत्र संख्या-३७ । लाइन-२०३४. च । भाषा-हिन्दी। विषय-सिद्धान्त । रचना काल-- लेखन काल-सं० १८६५ । पूर्व । वेष्टन नं. ७२६ ।
१२२. प्रति नं २-पत्र संख्या-४६ । साइज-१०१४ च लेखन काल-सं० १८६४ । पूर्ण। बोष्टन नं. ७३०।
१२३. प्रति नं.३--पत्र संख्या-४८ | साज-१०४६ च । खेखन काल-सं. १५६ भादव। मुदी १४ । पूर्ख । वेष्टन नं० ७४१ ।
विशेष- महात्मा देवकर्ण ने सवाण में प्रतिलिपि की । हेसराज ने प्रतिलिपि कराकर बधीचन्द के मन्दिर में स्थापित की। पहले तपा अन्तिम पत्र के चारों घोर लाइनें स्वर्ण को रंगीन स्याही में है, अन्य पत्रों के चारों ओर बेलें तथा ? अच्छे हैं । प्रति दर्शनीय है।
१२४ व्यसंग्रह भाषा-बंशीधर । पत्र संख्या-३० । साइज-10x६ रन । भावा-हिन्दी | विषयसिद्धान्त ! रचना काल-X । लेखन काल-~/ पूर्ण । वेष्टन ने० ८५७ ।
विशेष-प्रारम-जीवमजीवं दवं इत्यादि गाथा की निम्न हिन्दी टीका दी हुई है।
टोका-अहं कहिये मैं श हो सिद्धासचक्रवर्ति श्री नेमिचन्द्र नामा प्राचार्य सो त कहिये आदिनाथ महाराज है ताहि सिरसा कहिये मस्तक करि सब्बदा कहिये सर्वकाल विष बंदे कहिये नमस्कार करू' हूँ... ।
अंतिम
टीका-मो मुग्विणाहा कहिये है मुन्यों के नाय हो जयं कहिये नुम जु हो ते हगां दवं संगहे कहिये इहु द्रव्यसंग्रह अन्य है ताहि सोधयंतु कहिये सौग्यो है पुनिनाय हो तुम फैसाक हो.....।