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________________ संबह ] [ १५१ .विजयकीर्ति पूर्ण जिमनरलम संस्कृत पर्ण ३० श्लोक गजसमुद्र जिनर गरि प्रेमराज पारनाय स्तवन महावीरस्तवन प्रतिमास्तवन चतुर्विशति जिनस्तोत्र गीस विरहमान स्तुति पंचपरमेष्ठि अंध स्तवन सोलहसती स्तवन प्रबोध बावनी दानशील संवाद प्रस्तारिक दोहा লিন रचयसं. १७६१,५४पष। समयसन्दर जनरंगसरि इसका दूसरा नाम "दहा बंध बहुत्तरी" भी हैं । ७२ दोहा है । लेखनकाल ०१४४५ । बापना नसों के पटनार्थ कृष्णगर में प्रतिलिपि हुई थी। षष्ययराज बाफना के पुत्र की कुंडली - मं० १७७२ ७५३. गुदका नं. ६३ । पत्र संख्या-- से ५.८ तक । घाइज-३४५३इन । मावा-हिन्दी । लेखन काद-X1 अपूर्ण । घटने नं.११ 'विषय-सूची कर्ता भाषा विशेष जैन रामो हिन्दी लेखन काल सं. १७१ जेठ सुदी १५ विशेष - दौलतराम पाटनी ने कस्वा मनोहरपुर में लिखा प्राम्भ के १८ पच नहीं है। सिद्धिप्रिय स्तोत्र देवनदि मस्त २६ पप, इसे लनु स्वयम्म स्तोत्र भी कह तोपका बीनती मत्स्यायाकोसि हिन्दी रचनाकात मं० १७२३ चैत बुदी । विश्वभूषन पंच मंगल रुपचन्द विशेष—प्रारम्म के ७ पत्र तयार, २० और १२ वी पत्र नहीं है । ५४ मे धागे पत्र खाली हैं। ७४. गुटका नं।४। पत्र संस्था-२६ | साज-५४७ च । भाश-हिन्दी । लेखन काल-x/ पूर्व । देशम नं. ११.। विशेष - • काहखडी भाईस परीष १७-२६ पूर्व
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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