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पूर्ण ।
अन्त भाग सुणत गुणत गय मेद को रखा प्रकासत ज्ञान ।
हर जस कवि रस रीति को पात्रत सकल सुजान ॥ १६ ॥
॥ इति श्री रघुनाथ साह त ग संपूर्ण ॥
विशेष — बंद शास्त्र की संक्षिप्त रचना है किन्तु वर्णन करने की शैली अन्धो है !
(३) नित्य बिहार (राधा माधो) रघुनाथ- पत्र संख्या-2 मया हिन्दी प प सं १६
आम्मद चरचरी राजत रूप अंग अंग छवि धनूप
निरति लगत काम भूप बहु विवास मीनें ॥ रत्नजटित कर हाक मनि अमित वान । कुंडल इति उदित करन तिमर करत दोने ॥१॥ मातरम दिल
जैन चपस मोन चिसंत माशा शुरु मोहे ॥ कली दसन रसन बोरी इन मंद हसन कल कपोल अधर लाल मधुर बोल सोहै || २ ||
अन्तिम जन अघ नाम रटत मंगल सब पनि जटता । श्रकटित जस आर पति जगत गांद गांवे ॥ श्री बाल निति विहार धानंद तर जे उदार ॥ राघो भय होत पार प्रेम मक्ति
पार ॥११॥
॥ श्रति राधो माधी नित्य बिहार संपूर्ण ॥
विशेष रचना श्रृंगार रस की हैं।
( ४ ) प्रसंग सार - रघुनाथ | पत्र संख्या - ४३ से ५६ तक भाषा - हिन्दी पय । पद्म संख्या - १६० । रचना काल सं० १७४९ माघ सुदी ६ । पूर्णं ।
प्रारम्भ - एक रदन राजत वदन गन मंगल सुख कंद ।
[ गुटके एवं संग्रह ग्रन्थ
राव रिधि सिधि बुधि दे नव निस गवरी नंद ॥१२॥ बांनि गति यांनी कास खानी जात
हरि मोनी रोनी सकल वर दानी जय मात गुरु सत गुरु तीरथ निगम गंगादिक सुख आम देव त्रिदेव रखी सुमनि पूरत सबके काम ||२||