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________________ न्याय एवं दर्शन शास्त्र ] विशेष - सांगानेर में पं० नगराज ने प्रतिलिपि की गी । अन्य की एक प्रति और है । २०६. देवागमस्तोय - समंतभद्र पत्र संख्या ११-६६१ न्यायशास्त्र रचना काल- लेखन - पूर्ण वेष्टन नं० २०७१ विशेष- एक प्रति भीर है। ३०६. देवागमस्तोत्र भाषा - जयचन्द्र छाबडा । पत्र संख्या--४-११हिन्दी विषय न्यायशास्त्र रचनाकाल १० १०६६ चैत्र बुदी १४ । लेखन कामं० १६८४ पौष बुदी १५ पूर्ण वेष्टन २०४६१। -- ३१०. नयचक्र भाषा - हेमराज | पत्र संख्या - १७ | साइज - १०३४३ भाषा - हिन्दी | विषयदर्शनशास्त्र रचना फा०] १७२६ लेखन काल से० १०६२ । पूर्ण न मं० २०३ I न्यायदीपिका भाषा-पन्नानात पत्र संख्या १०३ रचनाकाल सं० १३५ मंगसिर सेखन काल x विशेष मन्म प्रशस्ति का अन्तिम भाग निम्न प्रकार है:अन्तिम पाठ [ ४७ ! ३११. न्यायदीपिका यति धर्म भूषण पत्र संख्या ३७ सह- ११४३ भाषा-संस्कृत विषय-याप शास्त्र । रचना काल -X | लेखन काल - x 1 पूर्णं । वेष्टन नं० २०११ विशेष क्रम को एक प्रति और है। ३१ . विषय-म्यान शास्त्र मा विषय ार्यक्षेत्रा में जयपुर अदभूत नगर महा ताके श्रधिपति नीति तुप श्रति रामसिंह नृप नाम कहा !! मंत्री पद में रायबहादुर जीवनसिंह नाम सहा साइज १२४६ । माषा-हिन्दी वेष्टन नं० ३९५ पूर्ण ताको गृह मति संधी भावह पन्नालाल सु धर्म चहा आवक धर्मी उत्तम कम्मी है मभी जिन वचमन के । नाम सदासुख नाशित सब दुख दोष मिटावन के || सास निकट जिन भूत निति प्रति न सुनत मन तापाय न्यायशास्त्र को रहिस ग्रह हित न्यायदीपिका हमें पदाय ॥ तास वचनका विशद करन की धानंद हृदय पटायी है। करी वीनती त्रिभुवन गुरू हैं अर्थ समस्त लखायी है || फतेलाल जय पंडित पर पति धर्म प्रीति को धारक है। शब्दागमत तथा व्यायते श्रर्थ समर्थन कारक है |
SR No.090394
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages413
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size8 MB
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